Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Jul 2020
अक्सर जिन्हें खोने के नाम से ही रूह कांप उठती थी,
आज देखों अरसे बीत गए उनसे बात किए।
जिनके चेहरे से दिन की शुरुआत होती थीं,
आज शाम ढल गई बिना उनका नाम लिए।
जो सिर्फ़ अपने मतलब के लिए हमें मरने देने को तैयार थें,
आज सोचते हैं कैसे हम उनके साथ जीए।
कभी सोचा था ये उम्र भर का साथ हैं,
और रिश्ते के नाम पर वो सारे धोखे सहे जो तुमने दिये।
उन्हें खुशियाँ देकर,
सारे ग़म हमनें पियें।
खुद भी जख्मी थें हम,
मगर अपने जख्म छोड़ तेरे घाव हमने सियें।
-Megha Thakur
Written by
Megha Thakur  25/F
(25/F)   
  201
   Mia Donaj
Please log in to view and add comments on poems