इतना सा फर्क है !
जीवन के मझधार में ,
सोच के ताना बना में,
धरा प्रवाह बहते विचारों में ,
उधेड़ बुन है इतनी, विचलित है मेरा मन |
तुम्हारे ख्यालों में तुम्हारे एहसास में,
दूर बैठी मैं निहार्थी हूँ आसमान को,
नीला निराकार आकाश का नीला रंग,
गहरा है मेरे विचारों की तरह,
ख्यालों के अंत में खो जाती हूँ नींद के आगोश में |
तुम्हारे साथ ही सोती हूँ उठती हूँ तुम्हारे साथ,
तुम नहीं होते पास मेरे,
बस इतना सा फर्क है |
आँख खुलते ही तुम्हारा मासूम मुस्कुराता चेहरा तो होता है,
पर उसे स्पर्श करने पर छूने का एहसास नहीं हो पाता,
बस इतना सा फर्क है |
आंसू तो बहते हैं आँखों से,
सर भी तुम्हारे सीने पर,होने का एहसास तो है,
पर मेरे सर को सहलाते तुम्हारे हाथो का,
स्पर्श महसूस नहीं होता,
बस इतना सा फर्क है |
तुम हो कर भी नहीं हो,
बस इतना सा फर्क है |
मेरे खोये चेहरे पर हंसी लाने की तुम्हारी चेष्ठा तो है ,
पर उस हंसी को तुम्हारी नज़रें देख न पाएंगी,
बस इतना सा फर्क है |
इतना सा फर्क है ....
Sparkle in Wisdom
2009
Will publish English version too... Later tomorrow..
This one was written in 2009,
About a journey of a mother of a quadriplegic child, a baby born and termed as vegetable by doctors... Given to her with words for development.. like "time will tell"
The baby who has a eyesight of power -9/10... Unsure of what he sees..
The baby who can touch his mother but not the 'touch' she long s for... His is just brushing of skin...
The baby who laughs on his own... Sure laughs with him too.. but alas he cannot see her smile.. nor can he make her smile..
!!