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Jul 2016
अय ज़िन्दगी

तू भी कहीं  रूठ ना जाये
हिज्र मुझसे कर ना जाये
तू भी कहीं मर ना  जाये
ये सोच कर हम  तुमसे
ग़िला करते भी तो क्या करते  ?

अय ख़स्ताहाल ज़िन्दगी  !अय ख़स्ताहाल ज़िन्दगी !


तू भी आजा , फिर औरों से
चले भी जाना अपने पैरों से
फिर आके यारे परिजद  का ख़याल दे
और कहना फिर  वही बात जाते हुए
कि  तारा फलक का ज़मीं पे  दिखाते  हुए
कि  भूल जा इसे दिल से निकाल दे

अय तस्कीं वक़्ते ज़िन्दगी !
अय तस्कीं वक़्ते ज़िन्दगी !
poem showing contrast of happy days and sad days on life.
ABDUR RAHMAN
Written by
ABDUR RAHMAN  NEW DELHI
(NEW DELHI)   
660
 
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