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karan aatre Apr 2016
बैठा मैं मंदिर में भी मस्जिद में भी,
ना भगवान का अक्स दिखा,हुआ ना अल्लाह का एहसास,
आज खुद पे तरस खाकर बोल उठा मैं,
खुदा कभी हमारा भी तो तू दीदार कर,
देख कबसे बैठे हैं तेरी चाह लेकर,
तू हमसे भी तो कभी प्यार कर,
ढूँडते हुए तुझे देख बरसों बीत गये,
क्यूँ लूँ मैं अब राम नाम,
जंग तो यहाँ रावण जीत गये,
लगता है आज मेरे लफ्ज़ नहीं,मेरी पीड़ा उस तक पहुँची थी,
और वो बोल उठा,
कण-कण में हूँ मैं,षण-षण में हूँ मैं,
क्यूँ मुझे इन दीवारों से जकड़ा हुआ समझा जाने लगा,
वो नदी भी हूँ मैं,वो पर्वत भी हूँ मैं,
सोच छोटी हुई तुम्हारी,और मैं भी बाँटा जाने लगा,
नेकी करने भेजा तुझे,यह ज़िंदगी तूने यूँ ही गवाँ दी,
आँकी नहीं इस जीवन की कीमत तूने,
और सारी की सारी मंदिर-मस्जिद में बिता दी.
karan aatre Apr 2016
धूल चख के उठ जाना राही,
लगता है तेरी मंज़िल कहीं और है,
हॉंसलें की साँस भर के फिर खड़ा हो जाना तू,
लगता है तेरा वक़्त कहीं और है,
गिरने से खरोचें भी तो कई आएँगी,
उम्मीद है तेरे आँसू तेरे घाव भर देंगे,
कहीं अकेला ना समझे खुदको,
राहगीर भी तुझे कई मिलेंगे,
अब इसी धूप में मीलों-मील चलना है तुझे,
लगता है वो तारों की छाओ कहीं और है,
धूल चख के उठ जाना राही,
लगता है तेरी मंज़िल कहीं और है.
karan aatre Jun 2016
यूँ मौत सी वो शाम थी,
वो शाम जो उदास है,
अकेलेपन का बोझ था,
कोई ना जो यूँ साथ है,
पड़ी जो तुम पर रोशनी,
अंधेरा कुछ तो मिट गया,
चले जो हम ना फिर रुके,
कोहरा दिल में था जो छट गया,
गुस्से में तुम जो कुछ कहो,
सुनू मैं हर एक बात को,
खिसक जो वो एक लट गिरे तुम्हारी आँखों पे,
मैं क्या कहूँ मैं क्या करूँ,
ये दिल जवाब दे गया,
अब ढूँढे दिल जगह-जगह,
उस रोशनी का ना है पता,
खुदी से अब यह पूछूँ बस,
गयी हो तुम या मैं मरा,
यूँ मौत सी ये शाम है,
ये शाम जो उदास है,
खुदी को खोके अब मुझे,
खुदी की अब तलाश है.
karan aatre May 2016
ज़रा भी कद्र हो हमारी,तो लौट के ना आना,
दिन तो दिए कम,गम यूँ तुमने हज़ार दिए,
तुम्हारे चेहरे की एक झलक पाने के लिए दिन गुज़ारा करते थे हम,
अब दोपहर गुज़र जाती है,शाम बार-बार दिए,
तुम्हारे लिए आँसू बहा के क्या फ़ायदा,
तुम्हारे आँसू की हर बूँद जो बहती है,नये नाम हर बार लिए,
इस तन्हाई से ही खुश हैं अब हम,
झूटा तुम्हारा प्यार यूँ गुज़रा,दिल हमारा तार-तार किए.
karan aatre Apr 2016
मेरा दिल कुचला गया उनके पैरों तले,
और हम सिर्फ़ मुस्कुराते रह गये,
अब सोच में हैं वो,कि हम जीएँगे कैसे,
पर वो क्या जानें,
हमनें भी झूंटि साँसें भरना सीख लिया.
251 · Jun 2016
THERE I STOOD
karan aatre Jun 2016
there i stood by the brook,
had  hope inside me like fire,
that cried for you,
with life that ignites inside me ire,
i wish i was true,
there i stood by the brook,
i heard the water's flow,
as time has passed,
looked at how the things were,
but saddened how long did they last,
leaves separated from the twigs,
the way our lives had,
wind said something in my ears,
ah! even that was sad,
tear drops falling,they carry your name,
wish you were there for me,
but now you ain't the same,
so there i stand by the brook,
when this night will end i questioned,
that's when i heard the dawn's call.

— The End —