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 Apr 2016 karan aatre
ThePoet
Rushing ecstasy
Intensive flow
Rising high
Crashing low
Raging apathy
Falling apart
Chaotic outbreak
Back to the start

©
जब देखा था तुझे पहली बार ,
जैसे साँस रूक सी गई थी मेरी ,
अगर निकल के आगे तभी
फिर से साँस ले लेता ,
तो आज शायद ज़िंदा होता ।
ना जाने क्या बदला है? ना जाने क्या अलग है?
जैसे सब कल था, आज भी वैसा तोह सब है…
वो कल भी वहीँ थे, वो आज भी वहीँ हैं …
हम ना कल थे कहीं भी, ना आज हम कहीं हैं..
टुकडों मे बिखरे थे, आज भी तोह तुकडे हैं...
बिछडे थे वोह जहां पे, हम तोह आज भी वहीँ हैं...
वही सूरज की किरने हैं, वही बारिश का पानी है…
वही नकली सी हँसी है, वही फिर से कहानी है..
जैसे सब कल था, आज भी वैसा तोह सब है…
ना जाने क्या बदला है? ना जाने क्या अलग है?

— The End —