आंधियों की आँखों में कही
एक शांत नीला सा आसमाँ देखा है.,
गहरे समुंदर के दिलों में कही
एक सुनहरी सुबह सा आकाश देखा है.
बेशुमार चलती सड़कों पर कोई
अकेला सा इंसान देखा है,
अनंत सितारों से भरे आकाश
में गहरा सा अंधकार देखा है.
अपनी आँखों को मूंद अपने
मस्तिष्क का बनाया हुआ एक संसार सा देखा है,
क्या कभी रेगिस्तान के मुसाफिर का
मृगतृष्णा से मुकम्मल सा प्यार देखा है|