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39 · Sep 2024
One rain
Mohan Jaipuri Sep 2024
It was abundant
rain this year
That helped crops
to sow and grow
Now last one
rain is required
to happy every bro
Ages have aspired
for this in past too
but wait of one rain has
never come true and
had turned always
every face  blue
Mohan Jaipuri Jul 2020
आज मैंने बनाई खीचड़ी
नजर जिस पर दाता की पड़ी
मैंने खीचड़ी घी भरा
दाता ने मेरा खेत भरा
मैंने झुक-झुक दाता का
गुण गान करा।।
It was a beautiful coincidence that I made khichdi in dinner as garnished it with ghee then the first major rain of this shravan started. I have expressed my joy of this gift by god in this poem.
Mohan Jaipuri May 2020
बीड़ी, सिगरेट ,चिलम और हुक्का
ये सब हैं फेफड़ों के दुश्मन पक्का
समय रहते जिसने इनको समझा
उसने‌ धुंआ होने से जीवन‌ को रोका।
No to tobacco
Yes to life
Today is world no tobacco day
38 · Sep 2020
शायरी
Mohan Jaipuri Sep 2020
यह इश्कबाजी ही है
शायरी की हवा ताजी
यह दर्द तो यूं ही बदनाम है
और मय को शामिल
करना एक लफ्फाजी
38 · Aug 2020
Hopeful choice
Mohan Jaipuri Aug 2020
A son remains a son
till he takes him a wife
A daughter remains
a daughter for whole life
A life is a life till
one has a wife
But in every situation
a daughter is a trustworthy
support and a hopeful choice
Mohan Jaipuri Jun 2020
लाल फूल व हरी पत्तियों वाला
सूट जिसका है आंगन काला
रेगिस्तान हरियाला लगे जब
पहने इसको कंचन वर्ण बाला
उस पर हरियाली चुनर और
मुस्कान का हुनर निराला
आंखें तुझ पर अटक गई
तू ये कैसा जादू कर गई।

मुश्किल तो तब बढी
जब देखे कंगन लाल
खनक इनकी सुन ना पाये
हम रह गए कंगाल
मन में आया अब बाली बन
तेरे कानों में लटक जाऊं
कंगन की खनक में
हर संगीत का आनंद पाऊं
आंखें कानों पर अटक गई
तू यह कैसा जादू कर गई।

मैं मन भर लिखता हूं
तुम सब पढ़ लेती हो
तुम रत्ती भर लिखती हो
मैं कैसे पढूं तुम्हें
इसलिए मेरी आंखें
तुम्हारा आईना बन गई
और तुम पर ही अटक गई
तू यह कैसा जादू कर गई।
Mohan Jaipuri Jul 2020
जब जब मैं इन्हें बनाता हूं
पसीना रीढ की हड्डी के ऊपर
चल कर पैरों तक आ जाता है
तो कभी नाक से उतर कर
मुंह में घुस जाता है।
मेरे शरीर की नमक की
पूर्ती सहसा ही कर जाता है
बिन पानी के ही मैं पवित्र
स्नान कर बाहर आता हूं
पर इसका मतलब यह भी नहीं कि
मैं अपने पसीने से तकदीर सींचता हूं
मैं तो बस गर्मी में अपने लिए
अपनी चार‌ रोटी बनाता हूं
पाठ यह सीखना बाकी है कि
महिलायें कैसे इतनी तपने के
बाद भी मुस्कुराहट के साथ
सबको खाना परोसती हैं
ना कभी एहसान जताती हैं?
Mohan Jaipuri Sep 2020
हिंदी वालों को हिंदी में
अंग्रेजी वालों को अंग्रेजी में
कईयों को टनों में तो
कईयों को किलो में
यों ही लूटाते जायें
सदाचार की खूशबू‌
इस जहां में
शायरी तो इसलिए
करते हैं‌ कि खोज
सकें कोई रहबर इस
जीवन जंग-ए-मैदान में
38 · Sep 2020
एक कड़ी
Mohan Jaipuri Sep 2020
एक कड़ी
खुशियों की लड़ी
शिशु ने पकड़ी
किशोर ने छोड़ी
तब से है सबकी
यादों में पड़ी
सतरंगी सी वह
बाल्यावस्था की घड़ी
38 · Jan 2020
Patience & Success
Mohan Jaipuri Jan 2020
What kind of ocean without waves
Happiness is
like the morning
Joy of happiness is
Only with family
Churning of conscience
Dependent on disaster
Without hindrance
What a patience
Without waves
What an ocean

Hard work
Your duty
Steadiness in failure
your patience
Patience is the step of success
Without patience
What a success
Without waves
What an ocean
38 · Sep 2024
Literacy day
Mohan Jaipuri Sep 2024
Eradicate illiteracy
Illuminate minds
Go for multilinguages
for better understanding
of future times
Mohan Jaipuri Aug 2020
चूरु कभी चूरु ही नहीं था
यह मेरे लिए एक तीर्थ स्थल था
जहां "सत्कार" एक आवास था
वहां सद्गुणों का वास था
भूख के समय भोजन-पानी
रात्रि को प्रवास  था
ज्ञान की बातें, हास्य व्यंग्य
और माखन मिश्री खास था
चिंताओं का पिटारा लेकर
जाता मैं उदास - उदास था
गुरु, गार्जियन व अनुज भ्राताओं का
स्नेह पाकर मिलता नया उजास था
सारी मुश्किलें भेद कर
पहन लेता नया लिबास था
छोटी- छोटी सी खुशियों के
बड़े-बड़े पंख लगते थे
स्कूटर की खरीद पर भी
कार के सपने होते थे
जब सारे सपने साकार हुए
गुरुजी भी शहर से पार हुए
वक्त ने ऐसा खेल दिखाया
सपने भी नौ दो ग्यारह हुए।
Dedicated to my teacher, my mentor and my guardian on his birthday today , 4th Aug.
Mohan Jaipuri Jul 2020
कोई कमाए लाखों
फिर भी रोटी खा सके ना हाथों
देख-देख दौलत लिफाफे
बहके बातों - बातों
दूजे कमाएं दुआएं
और सुकृत्य बांटे हाथों
देख-देख दुनिया हरखे
महके दिन और रातों
जो समझे ये कृत्य का फेर
वो कभी  फंसे ना व्यर्थ झंझटों
37 · Feb 2020
मरहम
Mohan Jaipuri Feb 2020
मरहम तभी लगा सकते हो
जब किसी की आंख का आंसू
आपकी आंख का आंसू बन बहने लगे
उसकी निराशा दूर करना
        आपके जीवन का उद्देश्य लगने लगे
मरहम तभी लगा सकते हो
जब किसी के हृदय का दु:ख
आपके हृदय की चुभन बनने लगे
उसकी हताशा दूर करना
         आपके जीवन का उद्देश्य लगने लगे
मरहम तभी लगा सकते हो
जब किसी की मृत्यु का दृश्य
आपकी आत्मा को झकझोर जाये और
‌          आप अपना वजूद भूल जाएं
मरहम की उम्मीद तब बेमानी है
जब किसी की आंख का आंसू
          किसी तराजू में तुलने लगे
जब किसी के हृदय का दु:ख
         इंतकाम का अवसर लगने लगे
जब मृत्यु का तांडव
     तुम्हारे पुराने घावों को सहलाने लगे
37 · Jul 2020
मौत
Mohan Jaipuri Jul 2020
मौत तो सच्चाई है
भले बुरे पर पर्दा डालना
इसकी सबसे बड़ी अच्छाई है
चलते फिरते आ जाए मौत
यही जिंदगी की सर्वोत्तम विदाई है।

बिना गमों के गुजरे जिंदगी
समझो कच्ची न्हाई (भट्टी) है
संघर्षों में गुजरे जिंदगी
उसको उठा ले जाने में
मौत भी बरतती चतुराई है।
Mohan Jaipuri Jul 2020
समय ही अब वह किताब है
जहां मेरे संघर्ष का हिसाब है
दोस्त और सोच अब तुम्हीं हो
जिसके लिए जारी अब करतब है
रास्ता अब तुम्हारी ओर ही  है
जहां विचार-विमर्श की आशा है
बिखरने का अब डर नहीं
ना कोई निखरने की अभिलाषा है।
37 · Jun 2020
Pearl Anniversary
Mohan Jaipuri Jun 2020
Today is Anniversary Pearl
But life now is not simple

Your ideals are our power
to live the life's each & every hour
Your memories are unending
Which recite the melody of life
Life stream is continuous
But life now is not simple

No happiness in life
No clothes have colors
Heart is now sad
No music has melody
No food has sweet taste
Only the timecycle moves on
But life now is not simple

No worry about loss & profit
No happiness - no sorrow ever hit
No weather changes a bit
No interest in day
No fear of darkness.
Just follow the nature's rule
But life now is not simple

Those who expire young
They always appear in memories as young
Maybe their power stays with us
And becomes our resource
This is our life's strength
But life now is not simple.
36 · Jun 2020
Lesson for Eco day
Mohan Jaipuri Jun 2020
We are not facing
environment change
Actually we are facing
environment breakdown
We are not doing
green revolution
But we are sowing
chemicals resulting
in severe pollution
& inviting self destruction
We have to understand
this problem and
then teach everyone
for its eradication
Don't take the nature for granted else it will not accept your existence.
Mohan Jaipuri Aug 2020
रक्षाबंधन पर बहना आई
लाई हर्ष अपार
देख उसे नैनों में फूट पड़ी फुहार
मिलना - बिछुड़ना तन से है
मन का सेतु है साकार
      ‌            तब तक मन में है त्योंहार।
माथे पर तिलक लगाया
दाएं हाथ पर बांधा धागा
मुंह में जब मिठास थमाया
तब मेरा अंतस्तल जागा
देख तुझे जब बचपन लगाए पुकार
                  तब तक मन में है त्योंहार
Today is the festival of  sisters and borthers in India which is called "Rakshabandhan".
Happy Rakshabandhan to all HPians.
Mohan Jaipuri Mar 2020
वर्ष -वर्ष सी लंबी मिनटें बन जायें
विष वियोग का पसरे जब आहों में,

टूट कर जीवन धारा‌ बिखर जाये
जब बिछड़ जाये कोई हमदम राहों में,

सांसें खाने लग जायें हिचकोले
धरती अंबर भी लगने लगे झूलते झूले

खुल जाता है भेद जीवन का सारा
जब हो जायें खुशियां खामोश क्षणभर में
Pain   despair       mortality
Still show must go on
Mohan Jaipuri Sep 2020
आज के जमाने में
लोग स्वार्थ से जुड़ते हैं
परमार्थ के नाम से
दूर भागते हैं
पर मानवता कि नींव
परमार्थ पर टिकी है
शायद इसीलिए जीवन की
रंगत बहुत फीकी है।।
35 · Feb 2020
Value of an art
Mohan Jaipuri Feb 2020
The price of a pearl
Can be assessed
By an expert
But
Who can assess
The price of the pain
An Oyster feels
While defending herself
from an irritant
Creating layer upon layer
Of nacre
35 · Apr 2020
आम और नीम
Mohan Jaipuri Apr 2020
मौसम है आमों का
कभी घूमते थे इनकी तलाश में
अब कुदरत का फरमान है
स्वास्थ्य ढूंढ रहा हूं घर के कड़वे नीम में
पिछले एक महीने में
बन गया हूं आधा हकीम मैं
भीड़ से दूर रहकर
करता हूं खुद पे यकीन मैं।
Mango and Neem season is same but we always ignored neem. One is sweet but another is bitter. This year it is bitter's turn.
Mohan Jaipuri Sep 2020
चेहरा देखूं तो
लगे गुलाब
आंखें देखूं‌
तो जादू
दांत देखूं तो
लगे रत्नावली
ओंठ देखूं
तो शोले
इश्क‌ वो
बिमारी है
जहां‌ मस्तिष्क
कुछ ना बोले।।
34 · Sep 2020
बुढ़ापा
Mohan Jaipuri Sep 2020
बुढ़ापा नहीं यह है उम्र सुनहरी
थोड़ा सा अपनापन दो और
देखो यह  सयानेपन की ढेरी ।।
Mohan Jaipuri Apr 2020
बचपन में जब स्कूल जाने का
मन नहीं हुआ करता था
कहते थे आज दांत में
दर्द है
खाना नहीं खाऊंगा
पिताजी समझ जाते थे
और घुमाने ले जाते थे।

अब आधी सदी बाद
जब सच में दांत में
दर्द होता है
खाना नहीं खाता हूं
ऑफिस भी नहीं जाता हूं
आज फिर कमी है पिताजी की तरह
घुमाने वाले की
और दर्द को
छूमंतर करने
वाले की।
Some pain are small but need attention of relations.
34 · Aug 2020
जादू
Mohan Jaipuri Aug 2020
लोग पूछते हैं जादू क्या होता है
शायद उन्होंने कभी देखा नहीं तुझे
वरना खुली आंखों से वो देखते सपने
रातों को फिर नींद ना सूझे
Mohan Jaipuri Aug 2020
अब तारीफों का वक्त नहीं
एहसासों को पढ़ना अच्छा है
मिले कहीं पुराने दोस्त
चेहरे की रंगत पढ़ना अच्छा है
बिन पूछे ही सब जान लें
इतना तजुर्बा रखना अच्छा है
लफ्जों का कोई बोझ नहीं
पर हल्के लफ्जों से भारी कुछ नहीं
ना आए कभी हल्के लफ्जों का भार
यह दुआ सौ दुआओं से अच्छी है।
The Cheap words are the heaviest thing in this world.
Mohan Jaipuri Apr 2020
सच कहते हैं
छोटों के सपने छोटे
और बड़ों के मोटे
देखना था शहर लखनऊ
पर हम आपके
पुराने 'नोट्स' देखकर लौटे
ना सपने को धार मिली
ना लखनवी व्यंजन चटपटे
बस तुम्हारा दीदार हुआ
और  तुरन्त सरपटे ।
Mohan Jaipuri Jun 2020
ये अंगुलियां भी कमाल हैं
जब कोई अपना इन्हें होठों पर रख दे
तो बन जाती मुश्किल में ये ढाल हैं।

जब कोई इनसे भोजन बनाकर खिला दे
तो तृप्ति होती बेमिसाल है।

जब दो प्रेमी बिछड़ जाएं
तो अंगुलियों पर गिनती करते
दिलों का बुरा हाल है।

जब कोई कम ज्यादा बोल दे
भेद दिल का खोल दे
ये अंगुलियां उठकर कर देती बेहाल हैं।

जब मूंगा पहनी उंगली की
कोई चेहरे से ज्यादा तारीफ कर दे
तो मच सकता बवाल है
कहलाता यह फ्लर्ट है
इसलिए रहना हमेशा अलर्ट है।
Mohan Jaipuri Aug 2020
इस जींस पर काले कोट की क्या जरूरत थी
तुम्हारे तो नैनों में ही वकालत का है हुनर
अगर कोई चला गया तेरे दिल की गलियों में
बह जाएगा धाराओं और दफाओं के समर।।
Mohan Jaipuri May 2020
अद्भुत है जीवन का खेल
नित नई सीख और नए अनुच्छेद
कहीं लाचारी और गरीबी की अमरबेल
कहीं नफरत, दु:ख और घोर अवसाद
अनंत जिजीविषा और असीमित लालसा
जिस पर ना कभी पड़े नकेल
जीवन का यह गूढ़ रहस्य
अब तक ना कोई पाया बेध
ममता और प्यार कहलाता है अनमोल
फिर भी वहीं से पनपती है दु:खों की सेज
जिसने समय रहते समझा ये खेल
उसने ही‌ जीता जीवन का युद्ध
जैसे प्रभु यीशु या गौतम बुद्ध ।
33 · Aug 2020
चटोरी जीभ
Mohan Jaipuri Aug 2020
कहीं सब्जी - कचोरी देखकर
हो ना जाऊं मैं टपोरी
उठाकर बैग पहुंच ना जाऊं पास तेरे
मेरी जीभ है निगोड़ी जरा चटोरी।
Festive season has arrived and I am under lockdown so can't control the feelings of tongue for snacks and sweets.
Mohan Jaipuri Feb 2020
रिश्ते में...

ना काले गोरे का भान हो
बस सही भावों का उत्थान हो
नकारात्मकता का पतन हो
                               हृदय की बात सुनी जाए
                                  कोई राज बीच ना रह जाए
उम्र की ना कोई चर्चा हो
जमाने की रुसवाई पर ना खफा हों
बस आंखों में विश्वास हो
                            चेहरा ही सब बता जाए
                                  कोई राज बीच ना रह जाए
चांद ,तारे मिले ना मिलें
फूलों से सेज खिले ना खिले
फुर्सत के क्षण मिले ना मिलें
                                आंखों में आशा मिल जाए
                                  कोई राज बीच ना रह जाए
अपनो के आंगन सदा घूमें
स्नेह हमेशा आंचल चूमे
देश - दुनिया में घूमे ना घूमें
                               ख्वाबों की दुनियां ना मुरझाए
‌                             कोई राज बीच ना रह जाए
Mohan Jaipuri Apr 2020
कभी हम लिखते थे खत
शुरू करते थे श्री गणेशाय से
आज मोबाइल मैसेज शुरू होते हैं हाय से।
     अब हम सुनते हैं फ्यूजन संगीत
     संस्कृति छोड़कर पकड़ ली नई रीत
     गुरु चरणों से दूर होकर
     कोचिंग केंद्रों पर सिमट गया ज्ञान का दीप
कभी विचार करते थे परोपकार का
अब करते हैं उसको गुड बाय दूर से
     छोड़कर खेतों की हरियाली
     हमने सड़कों की भीड़ अपना ली
     दबाकर सारी ख्वाहिशें
     हमने अंदर चुप्पी भर ली
कभी रिश्तों का मजबूत कवच था
अब सब कुछ है फिर भी लगते हैं लावारिस से
     गांव की याद आती है सपनों में
     अपनों का अक्स महसूस होता है सांसो में
     रिश्तो की केंचुली उतर रही है
     लगता है जैसे घिस गए हैं बरसों में
कभी हंसते थे खिलखिला कर
अब रहते हैं अनमने से
     कंप्यूटर बन कर जी रहे हैं
     कंप्यूटर पर ही लिख रहे हैं
     कंप्यूटर ने ही समेट लिया हमारा घर
     बच्चे हों या बूढ़े हों सबके कुतर दिए इसने पर
घर- परिवार ,सामाजिक परिवेश को छोड़कर
फिरने लगे हैं रोबोट से।
Mohan Jaipuri Apr 2020
छूट गए वे गोरे - गोरे धोरे
जिन पर बनी टापियों में बीते दिन सुनहरे
          जहां-तहां
          ठहरी नग्न पदचापें
          पानी के छिड़काव वाली
          ठंडाई फिर से ताकें
यादों के झरोखे से ताकते
आज भी वो चील झपटे के घेरे
          भूले...
          वह प्राकृतिक खेती
          होती थी जो
          गोबर खाद सेती
रोहीड़े के पेड़ों पर वो रंगीले फूल
और ऊपर ताकते वो बकरियों के चेहरे
          रेत पर बनी
          वो हसीन लकीरें
          जो लिखती थी
          सबकी उम्दा तकदीरें
ऊंटों के टोले, देते थे हिचकोले
जेहन में आज भी जिंदा हैं वो निराले फेरे
Mohan Jaipuri Jun 2020
दीर्घ वृत्ताकार तेरा मुखड़ा
जिस पर सूर्य जैसी बिंदी
आंखें मय के प्याले जैसी
उड़ा दे सबकी निंदी
झूमर तेरे शंकवाकार
जो कर दें दिल बेकरार

गर्दन तेरी सुराही दार
जिसमें मैचिंग वाली माला
साड़ी पहने लाल पर
दुर्गा लगती है ये बाला
होंठ तेरे पंखुड़ी जैसे
नाक है सुआदार

चूड़ियों से भरे हाथ तेरे
बिखेरे इंद्रधनुषी रंग
घुंघराले बाल तेरे
अद्भुत लहराने का ढंग
चश्मे में से जब तू देखें
चेहरा लगे ईमानदार

पूजा वाली थाली संग
लगती नारी हिंदुस्तानी
जिधर से भी तू गुजरे
उधर मौसम हो जाए तूफानी
देख तुझको जी‌ ललचाये
जैसे तू हो रसगुल्ला शानदार

इतना सब सोच समझ कर
लिखने का चल दिया अपना दांव
मैं दूर देश का सीधा सादा
बड़ा दूर ही मेरा गांव
गलती हो तो माफ करना
यही जहन मे आया सरकार।
Mohan Jaipuri Aug 2020
बरसात के दिनों में बादल छाए रहते हैं
पेड़ पौधे खूबसूरती में नहाए रहते हैं
भावनाओं के हुजूम अंदर उमड़ते रहते हैं
यदि ना हो कोई हुजूम थामने वाला
आंखों से झरने अक्सर झरते रहते हैं।
Mohan Jaipuri Mar 2020
दिल के जज्बात बताने के लिए
आंखें काफी हैं
सामाजिक व्यक्तित्व दर्शाने के लिए
' नमस्कार' काफी है
विचार अभिव्यक्ति के लिए
लेखनी मन मुवाफिक है
हाथ से रगड़ कर हाथ दिन में कई बार धोना
‌‌ ‌‌ है समय के लिए प्रभावी कारगुजारी
रूबरू बात करनी हो तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग
‌ सहज सुलभ उपलब्ध है
दिखाना हो यदि सच्चा प्यार
घर में लाएं मास्क और सैनिटाइजर
रहना है सुरक्षित तो बनाएं भीड़ से दूरी
है यही समझदारी और कल्याणकारी
Mohan Jaipuri Aug 2020
एक पाककला का जादूगर
और परोसगारी का बाजीगर
      रोज सुबह खोले पिटारा
      देख ललचाए जी हमारा
      कोविड का समय है
      हम महसूस करें बेसहारा
हिया हमारा टूट रहा
अब बन जाओ तुम रफ्फूगर
      कभी शादियों की दावतें
      कभी पार्टियों की जाम खोरी
      कभी बेलन जैसे हथियार की
      मन गुदगुदाती मसखरी
इतने बड़े-बड़े मसले
पर नहीं है मेरे पास असले
अब बन जाओ तुम शौरगर
      कभी दिल्ली के पराठे
      कभी गुजरात के ढोकले
      कभी पंजाब के छोले भटूरे
      कभी बंगलुरु के डोसे
देखने के अब तक बहुत हो गए शोसे
कभी तो बन‌ जाओ उदर पूरगर
देंगे हम दुआएं बनकर पसरगर।
Mohan Jaipuri Jan 2020
दोस्त जिंदगी की किताब
के खूबसूरत पन्ने हैं
जो बेमिसाल रंगों से रंगे हैं
कई फूलों से प्रत्यक्ष चमकीले हैं
कई अंदर से रंगीले हैं
कई तो ऐसे भेजते हैं संदेश
जैसे उन्होंने धर लिया हो मधुकर का भेष
कुछ ऐसे होते हैं बिंदास शायद
उनके आंचल नहीं होते कभी उदास
ऐसे प्यारे दोस्तों ने अपनी बधाइयों से
आज भी यह दिन बनाया है खास
जिससे इस सर्द मौसम में भी
गर्माहट का हुआ पूरे दिन एहसास
अब 55 का हृदय हुआ
बालों में सोना उगा
फिजां भी है बदली- बदली
बस एक दोस्त ही हैं जो अब भी
बातें करते हैं संदली-संदली
Yaum-e-wiladat ehsas
Mohan Jaipuri Jun 2020
आज एनिवर्सरी पर्ल है
जीवन कहां अब सरल है।

आदर्श आपके हमारी शक्ति हैं
जीवन जीने की युक्ति हैं
यादें आपकी हर पल आती हैं
जीवन का राग सुनाती हैं
          जीवन धारा अविरल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।

ना जीवन में वो उमंग है
ना कपड़ों में वो रंग है
दिल की गली अब तंग है
ना संगीत में रंगत है
ना भोजन में वह रस है
          बस कालचक्र अटल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।

ना लाभ - हानि की फिक्र है
ना सुख- दुख: का कोई जिक्र है
ना मौसम का कोई फेर है
ना दिन में कोई दिलचस्पी है
ना अंधेरे का डर है।
          बस प्रकृति नियमों पर अमल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।

जो जवां चले जाते हैं
वो हमेशा जवां यादों में दिखते हैं
शायद उनकी शक्ति हमारे साथ रह जाती है
और हमारी थाती बन जाती है
          यही अब जीवन संबल है
          पर जीवन कहां अब सरल है
          आज एनिवर्सरी पर्ल है।
Mohan Jaipuri Mar 2020
वो कहते हैं प्रेम ना कभी अकेला आया
यह अपने साथ वासना की लाता है माया

वासना तो प्रेम का पार्श्व प्रभाव है
जिसका ज्यादा मूल्य ना किसी ने लगाया

वासना तो मात्र एक मोह है कच्चा
प्रेम तो रचता है मर कर भी ताजमहल पक्का

है प्रेम बिन काया, काया में प्रेम कहां से आया
काया से ही प्रेम होता,फिर मीरा को श्याम क्यों भाया
29 · Mar 2020
मन के भाव
Mohan Jaipuri Mar 2020
मैं कवि नहीं, मैं गीतकार नहीं
मैं नायक नहीं, मैं उन्नायक नहीं
जो मेरे साथ घटता है
       उसी को मैं लिख लेता हूं
प्रतिक्रिया स्वरूप लिखते-लिखते
एक रूचि सी बन गई है
कागज-पेन की इस क्रिया में
जो पाठकों का प्यार मिल जाता है
‌      उसी से दिल बहला लेता हूं
कोई पगला,कोई सनकी
कोई काव्य दीवाना कहता है
सच तो यह है कि इन विशेषणों से ही
‌‌      मेरा काव्यकोश भर लेता हूं
29 · Apr 2020
पूरी
Mohan Jaipuri Apr 2020
सर्दी, गर्मी या फिर हो वर्षा
सब मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

सर्दी में खीर,हलवा संग
ले लो चार पूरियां
सर्दी से बन जाएगी
आपकी दूरियां
सब मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

वर्षा ऋतु में महकने लगता है
मिट्टी का कण-कण
देख कर गिरती बूंदे
कानों में बजने लगता
संगीत छन- छन
रसोई में आकर तल लेते हैं
सनन-सनन चार पूरियां
अचार या भाजी संग
लगती लजीज पूरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

गर्मी की ऋतु आई
खाने की इच्छा पर भी बन आई
ऐसे में यदि कोई तल दे चार पूरियां
परोस‌ दे धनिया और
पुदीना की चटनी संग पूरियां
ऊपर से पिला दे दो गिलास रायता
आने लगती है नींद की हिलोरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

बांग्ला या गुज्जू
उत्तर या दक्षिण सुदूर
सबकी नजर में
बराबर इसका वजूद
सबको एक जैसी
अजीज हैं पूरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां
Today is "Akshya Tritiya" which means immortal day. We cook some good food on this day. I have taken "Poori /Puri " for my writing  showing my love for poori
Mohan Jaipuri Jun 2020
पवन तू मेरा संदेशा
उस कजरारे नैनों वाली से कहना
नगर से दूर एक मरुद्यान में
हम उनकी नेट पर बाट जोहते
जोहते- जोहते आंख लगे तो
सपनों में भी तुमको पाते
यही मनोदशा है जब से देखा
क्यों हो गया यह दिल बेगाना
पवन तू मेरा संदेशा
उस कजरारे नैनों वाली से कहना

कूलर की ठंडी बयार में भी
उनके होठों की मुस्कुराहट की
याद बेचैन कर जाती है
मोबाइल के हर नोटिफिकेशन पर
बेसब्री अचानक दस्तक दे जाती है
सुबह से यही हाल है
जैसे किसी ने लूटा हो चैना
पवन तू मेरा संदेशा
उस कजरारे नैनों वाली से कहना

दूर कहीं जब कोयल बोले
दौड़ कर उसके पास जाते
तुम्हारे खुले बालों की तारीफ में
उसे कई कसीदे सुनाते
यही क्रम उनका चल रहा है
कभी दौड़ना कभी बहकना
पवन तू मेरा संदेशा
उस कजरारे नैनों वाली से कहना

खाली घर प्रतिध्वनि करता
उनकी यह व्यथा सुन
जल्दी से संपर्क जोड़ो
पल भर कर लो गुन गुन गुन
तुम्हारी तत्परता पर निर्भर है
उनका यह जीवन बेगाना
पवन तू मेरा संदेशा
उस कजरारे नैनों वाली से कहना
Mohan Jaipuri Mar 2020
खुशी का ठिकाना ना जानू
ना दु:ख का प्रमाण
        जो आना है आएगा
        क्यों सूखें मेरे प्राण?
कल तक उड़ते थे आकाश में
आज है घर में विराजमान
        जो मिलता है सहज ही
        करो उसका सम्मान
कल तक हाट बाजार में
तरह-तरह के सामान
        आज रुपया जेब में
        फिर भी बाजार सुनसान
जो कल तक कहते थे
सब कुछ हैं विज्ञान और अनुसंधान
       ‌आज उनके ही तीर को
‌        नहीं मिल रहा कमान
हम तब तक ही कर पाते
        जब तक प्रकृति दे वरदान
        बिन उसकी अनुकूलता
हमारा कोई न मान
जितना यहां मिले मौका
उतनी हंसी कर लूं नाम
‌ ‌    जो आना है आएगा
     क्यों सुखें मेरे प्राण?
Something away from corona.
Why i should  worry ?
Mohan Jaipuri Mar 2020
गलियां हैं सुनसान
मन में है मायूसी
                 दिन लगते हैं महीने
                  रातें लगती साल
गलियों की चौकीदारी
है वक्त की मिसाल
                पूजा घर हैं सुने
                अस्पतालें हैं बेजार
झुलस रही है मानवता
एक वायरस के खौफ में
              सब कुछ है समर्पित
              इस मानवता की जिहाद में
रातों का मोल ही क्या
जब दिन ही हैं दुश्वार
Fight against covid-19
Mohan Jaipuri Jan 2020
गणतंत्र नाम है गौरवशाली
जिससे हर तरफ है खुशहाली
जन की सत्ता में है भागीदारी
चाहे हो पुरुष, चाहे हो नारी
सबको मिलती अपनी बारी
युवा भी रखते अपनी बात
बिना कोई रोक और दुश्वारी।

गांव, शहर,राज्य और देश
सब चुनते हैं अपनी सरकार
खड़ग,भाला, ढाल और तलवार
कभी नहीं होती इन की दरकार
ना गरीब, अमीर , अल्पसंख्यक
और बहुसंख्यक का विशेषाधिकार
सिर्फ स्वस्थ बहस और वोटिंग
यही है बस इसका आधार।

संसद में बनते कानून
समय-समय पर संशोधन
तरह तरह का होता मंथन
जिसका हो जितना प्रज्ञा चिंतन
गरीब, अमीर, धर्म ,जाति का भेद मिट जाए
बस गणतंत्र इतना और सक्षम हो जाए।।
Mohan Jaipuri Jun 2020
स्वागत बूंदाबांदी का
भीषण गर्मी में ही होता है
बरसात के बाद तो
बूंदाबांदी महत्वहीन लगती है
यह समझने में बहुत समय लगता है
कि बरसात के बाद की बूंदाबांदी
हर सजीव के जीवन में नया रस भरती है

जवानी की तपिश में भी
रूमानियत बूंदाबांदी की तरह होती है
तब पौरुष की बरसात तो घर संसार
बसाने में ही खर्च होती है
अधेड़ अवस्था ही बचती है
जिसमें कुछ रूमानियत और
कुछ रूमानियत की यादें
जीवन में उल्लास भरती हैं
बिखरते मेले की मायूसी दूर करती हैं
लेकिन यह क्या ? दुनिया इसे
सठियाना कहती है
और यह बरसात के बाद की बूंदाबांदी
की तरह गंदगी लगाने वाली लगती है
लेकिन उन्हें नहीं पता कि यही
वह बरसात के बाद की बूंदाबांदी है
जो हर सजीव के जीवन में
उल्लास भरकर नया रस बनाती है।
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