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Mohan Jaipuri Mar 2020
वो कहते हैं प्रेम ना कभी अकेला आया
यह अपने साथ वासना की लाता है माया

वासना तो प्रेम का पार्श्व प्रभाव है
जिसका ज्यादा मूल्य ना किसी ने लगाया

वासना तो मात्र एक मोह है कच्चा
प्रेम तो रचता है मर कर भी ताजमहल पक्का

है प्रेम बिन काया, काया में प्रेम कहां से आया
काया से ही प्रेम होता,फिर मीरा को श्याम क्यों भाया
33 · Apr 2020
पूरी
Mohan Jaipuri Apr 2020
सर्दी, गर्मी या फिर हो वर्षा
सब मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

सर्दी में खीर,हलवा संग
ले लो चार पूरियां
सर्दी से बन जाएगी
आपकी दूरियां
सब मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

वर्षा ऋतु में महकने लगता है
मिट्टी का कण-कण
देख कर गिरती बूंदे
कानों में बजने लगता
संगीत छन- छन
रसोई में आकर तल लेते हैं
सनन-सनन चार पूरियां
अचार या भाजी संग
लगती लजीज पूरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

गर्मी की ऋतु आई
खाने की इच्छा पर भी बन आई
ऐसे में यदि कोई तल दे चार पूरियां
परोस‌ दे धनिया और
पुदीना की चटनी संग पूरियां
ऊपर से पिला दे दो गिलास रायता
आने लगती है नींद की हिलोरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां

बांग्ला या गुज्जू
उत्तर या दक्षिण सुदूर
सबकी नजर में
बराबर इसका वजूद
सबको एक जैसी
अजीज हैं पूरियां
हर मौसम में एक समान
स्वादिष्ट लगती हैं पूरियां
Today is "Akshya Tritiya" which means immortal day. We cook some good food on this day. I have taken "Poori /Puri " for my writing  showing my love for poori
Mohan Jaipuri Jan 2020
गणतंत्र नाम है गौरवशाली
जिससे हर तरफ है खुशहाली
जन की सत्ता में है भागीदारी
चाहे हो पुरुष, चाहे हो नारी
सबको मिलती अपनी बारी
युवा भी रखते अपनी बात
बिना कोई रोक और दुश्वारी।

गांव, शहर,राज्य और देश
सब चुनते हैं अपनी सरकार
खड़ग,भाला, ढाल और तलवार
कभी नहीं होती इन की दरकार
ना गरीब, अमीर , अल्पसंख्यक
और बहुसंख्यक का विशेषाधिकार
सिर्फ स्वस्थ बहस और वोटिंग
यही है बस इसका आधार।

संसद में बनते कानून
समय-समय पर संशोधन
तरह तरह का होता मंथन
जिसका हो जितना प्रज्ञा चिंतन
गरीब, अमीर, धर्म ,जाति का भेद मिट जाए
बस गणतंत्र इतना और सक्षम हो जाए।।
Mohan Jaipuri Jul 2020
ऐसा लग रहा है
जैसे दरिया से लौट रही हो
दरिया की सारी नीलिमा
लिपटाकर साथ ला रही हो
पीछे सुनहरी रेत का
सिर्फ जखीरा छोड़़ आई हो
मेहरबानी बजरों पर हुई
जो आप के सवार होने से
नीले बच गये हों
हीरे मोती दरिया के
पर्स में भरके लाई हो
हुस्न और वैभव सारा
लूट समुद्र का किसका
भाग्य लिखने जा रही हो
Mohan Jaipuri Jun 2020
स्वागत बूंदाबांदी का
भीषण गर्मी में ही होता है
बरसात के बाद तो
बूंदाबांदी महत्वहीन लगती है
यह समझने में बहुत समय लगता है
कि बरसात के बाद की बूंदाबांदी
हर सजीव के जीवन में नया रस भरती है

जवानी की तपिश में भी
रूमानियत बूंदाबांदी की तरह होती है
तब पौरुष की बरसात तो घर संसार
बसाने में ही खर्च होती है
अधेड़ अवस्था ही बचती है
जिसमें कुछ रूमानियत और
कुछ रूमानियत की यादें
जीवन में उल्लास भरती हैं
बिखरते मेले की मायूसी दूर करती हैं
लेकिन यह क्या ? दुनिया इसे
सठियाना कहती है
और यह बरसात के बाद की बूंदाबांदी
की तरह गंदगी लगाने वाली लगती है
लेकिन उन्हें नहीं पता कि यही
वह बरसात के बाद की बूंदाबांदी है
जो हर सजीव के जीवन में
उल्लास भरकर नया रस बनाती है।
Mohan Jaipuri Mar 2020
जब मास्क नहीं लगाते हो
            फिर क्यों आते हो?
ना हाथ मिलाना, ना गलबहियां करना
बस आंखें मिला लेना जल्दी-जल्दी
अभी फिजां है कुछ बदली-बदली
सांसें अभी सांसत में हैं
क्यों सांसो पर जुर्म करते हो?
जब मास्क नहीं लगाते हो
            फिर क्यों आते हो?

साबुन छोड़कर कहीं ना चलूं मैं
सैनिटाइजर के अलावा कुछ ना लूं मैं
भीड़ में है कोरोना का खतरा
क्यों तुम नादान बनते हो?
जब मास्क नहीं लगाते हो
               फिर क्यों आते हो?
A poem for corona prevention
Mohan Jaipuri Mar 2020
अभी तक बुद्धि फिरते देखी
अब हालात बदलते देख रहे हैं
      कभी बेटा बुढ़ापे की लाठी कहा जाता था
      परिवार उस पर इतराता था
          जब जिम्मेदारियां नहीं निभाता था
          तब बुद्धि फिरा कहा जाता था।
एक वायरस ऐसा आया
सारे रिश्तों को साफ कर गया
      यदि हो जाए कोई प्रभावित
      सब भागें हो आतंकित
       जिम्मेदारी अब बन गई भागना
       सिर्फ डॉक्टर को पड़े संभालना
देखो यह मानवता की विडंबना
  इसे कहते हैं हालात फिरना।
कहीं बच्चे अकेले रहकर
भूख से दम तोड़ गए
      कहीं बुजुर्गों को मिले नहीं वेंटिलेटर
      और दब गया मौत का एक्सीलेटर
जो सिखाया था जग ने उसका रहा नहीं कोई मोल
अब जो सिर्फ हालात सिखाएं वही है अनमोल
      चीज बहुत हैं दुनिया में
      लेकिन उपयोग कर नहीं सकते
          बन गया आदमी घर का कैदी
          जैसे हो कोई इसने लंका भेदी
हालात बन गया है ड्रैकुला
सारे रिश्तों का बना दिया कर्बला।

— The End —