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far or close, doesn’t matter
where we are present now
we are part of our fantasies

weak or stronger, mostly better
never believed is that possible
we are part of our fantasies

sooner or later, writing letter
locked out in our worlds
we are part of our fantasies

now or never, tell you later
feel like never before when
we are part of our fantasies
#fantasy
I touched that feeling
...sleeping
...dreaming
I am not sober anymore
Sip of...
यदि
बनना चाहते तुम ,
सिद्ध करना चाहते तुम
पढ़ें लिखों की भीड़ में
स्वयं को प्रबुद्ध
तो रखिए याद
सदैव यह सच ,
यह याद रखना बेहद जरूरी है
कि अंत:करण बना रहे सदैव शुद्ध ।
अन्यथा व्यापा रहेगा भीतर तम ,
और तुम
अंत:तृष्णाओं के मकड़जाल में फंसकर
सिसकते, सिसकियां भरते रहे जाओगे ।
तुम्हारे भीतर समाया मानव
निरंतर दानव बनता हुआ
गुम होता चला जाएगा ,
वह कभी अपनी जड़ों को खोज नहीं पाएगा ।

वह
लापता होने की हद तक
खुद के टूटने की ,
पहचान के रूठने की
प्रतीति होने की बेचैनी व जड़ता से
पैदा होने के दंश झेलने तक
सतत् एक पीड़ा को अपनाते हुए
जीवन की आपाधापी में खोता चला जाएगा।
वह कभी अपनी प्रबुद्धता को प्रकट नहीं कर पाएगा।
फिर वह कैसे अपने से संतुष्ट रह पाएगा?
अतः प्रबुद्ध होने के लिए
अपने भीतर की
यात्रा करने में सक्षम होना
बेहद जरूरी है।
यह कोई मज़बूरी नहीं है ।
०३/१०/२०२४.
' मर ना शीघ्र ,
जीवन वन में घूम ।' ,
जीवन , जीव से , यह सब
पल प्रतिपल कहता है ।

जीवात्मा
जीवन से बेख़बर
शनै : शनै :
रीतती रहती है ।
यथाशीघ्र
जीवन स्वप्न
बीत जाता है ।
जीव अपने उद्गम को
कहां लौट पाता है ?
वह स्वप्निलावस्था में खो जाता है।

०३/१०/२०२४.
जंगल में मंगल अमंगल
परस्पर एक दूसरे से
गुत्थमगुत्था हुए
करते रहते हैं अठखेलियां।

वहां कैक्टस सरीखी वनस्पति भी है,
तो बांस जैसी लंबी घास भी,
विविधता से भरपूर वृक्ष, झाड़ झंखाड भी।
इन जंगलों में पाप पुण्य से इतर
जीव जगत के मध्य चलता रहता है संघर्ष।
जैसे अचानक कहीं फूल खिल जाए ,
और अप्रत्याशित रूप से
कोई जीवन बुझ जाए ,
यहां हवा के चलने  से
सूखे और मुरझाए पत्ते
मतवातर गिरते जाएं
और वह पगडंडियों को
धीरे-धीरे लें ढक।


अब शहर जंगल सा हो गया है ,
जहां जीवन तेजी से रहा है भाग
सब एक आपाधापी में खोए हैं ।
इसी शहर में कभी-कभी
कोई विरला व्यक्ति
बहुत धीमी गति से
चलता दिखाई देता है ।
मुझे वह आदमी
जंगल का रखवाला सा प्रतीत होता है।

कभी-कभी इस जंगल में
कोई बालक धीरे-धीरे
अपने ही अंदाज से चलता दिखाई देता है,
कभी धीरे, कभी तेज़,कभी रुक गया,कभी भाग गया।
उसे देख मन में आता है ख़्याल
कि क्या कभी यह  नन्हा सा फूल
इस शहरी जंगल की आपाधापी के बीच
ढंग से खेल पाएगा ,या असमय
नन्हे कंधों पर महत्वाकांक्षा की गठरी लादे जाने से
किसी पत्ते जैसा होकर नीचे तो नहीं गिर जाएगा?
वह किसी बेपरवाह के पैरों के नीचे तो नहीं दब जाएगा ?


जंगल अब शहर में गमलों तक गया है सिमट।
जैसे अच्छी खासी जिंदगी
जो कभी जंगल की खुली हवा में पली-बढ़ी थी।
गांव से शहर आने के बाद  
दफ्तर और घर तक तक सीमित होकर रह जाए।
वह वहीं घुट घुट कर एक दिन जगत से निपट जाए।

अच्छा रहेगा ,  दोस्त !
अपने भीतर के कपाट खोले जाएं ।
स्मृति के झरोखों को खोल कर
अपना विस्मृत हुआ जंगल, जानवर और पंछी
फिर से अपने आसपास खोजें जाएं ।

प्राकृतिक जंगल में
जहां
सब कुछ बंधन मुक्त रूप से  
होता है घटित ,
वहीं
शहरी जंगल में
सब कुछ बंधा बंधा सा,
सब कुछ घुटा घुटा सा
होता है घटित।

कमबख्त आदमी
कभी भी
शहरी जंगल में
सुखी नहीं रह पाता है ,
और  कभी सुख का सांस नहीं ले पाता है,
वह तो असमय
एक मुरझाया फूल बनकर रह जाता है
जो हर समय
अपनी बचपन के जंगलों के
ख्वाब लेता रहता है।
०६/१२/२०२४.
सफलता का इंतज़ार
किसी परीक्षा से कम नहीं है।
बड़ी मुश्किल से मुद्दतों इंतज़ार के बाद
सफल कहलाने की घड़ी आती है।
परीक्षा देते देते उम्र बीत जाती है।
०७/१२/२०२४.
यदि
कोई बूढ़ा
बच्चा बना सा
पढ़ता मिले कभी
तुम्हें
कोई चित्र कथा !
तब तुम
उसे बूढ़े बच्चे पर
फब्तियां
बिल्कुल न कसना ।
उसे
अपने विगत के  
अनुभवों की कसौटी पर
परखना।
संभव है कि वह
अपने अनुभव और अनुभूतियों को
बच्चों को सौंपने के निमित्त
रचना चाहता हो
नवयुग की संवेदना को
अपने भीतर  सहेजे हुए
कोई अनूठी
परी कथा।
बल्कि तुम
उसकी हलचलों के भीतर से
स्वयं को गुजारने की
कोशिश करना ।
संभव है कि तुम
उसे बूढ़े बच्चे से
अभिप्रेरित होकर
चलने लगो
अपनी मित्र मंडली के संग
सकारात्मकता से
ओतप्रोत
जीवन के पथ पर ।


यदि
कोई बालक
हाथ में पकड़े हुए हो
अपने समस्त बालपन के साथ
कोई वयस्कों वाली किताब !
तब तुम मत हो जाना
शोक मग्न!
मत रह जाना भौंचक्का !!
कि तुम्हें उस मुद्रा में देखकर लगे
उसे अबोध को धक्का !!
संभव है-
वह
बूढ़े दादा तक
घर के कोने में
पटकी हुई एक तिरस्कृत
संदूकची में
युवा  काल की स्मृति को
ताज़ा करने वाली
एक प्रतीक चिन्ह सरीखी निशानी को ,
धूल धूसरित
कोई अनोखी किताब
दिखाने ले जा रहा हो।

और...
हो सकता है
वे,दादा और पोता
अपनी अपनी अपनी उम्र को भूलकर
हो जाएं
हंसते हुए खड़े
और देकर
एक दूसरे के हाथ में
अपने हाथ
चल पड़े साथ-साथ
करने
समय का स्वागत ,
जो सदैव हमारे साथ-साथ
चल रहा है निरंतर ,
हमें नित्य ,नए अनुभव और अनुभूतियां
देता हुआ सा ,
हमारे भीतर चुपचाप स्मृतियां बन कर
समाता हुआ ,
हमें  प्रौढ़ बनाता हुआ ।
हमें निरंतर समझदार बनाता हुआ।

०५/११/१९९६.
जीवन में होती नहीं
जब कोई बनावट ।
मन मस्तिष्क में भी
जब तब सफल होने की ,
होने लगती है आहट ।

ऐसे में
चेहरे की बढ़ जाती है रौनक ,
होठों पर आन विराजती
रह रह कर मुस्कुराहट !
जो लेती हर , हरेक थकावट !!
२१/१२/२०१६.
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