नाद
पर कर नृत्य
अनुभूति के पार उतरकर,
बनकर अद्वितीय !
कर मुझे चमत्कृत !
ओ ,योगीनाथ शिव !
तुम्हारे आगमन की गंध,
कण-कण में है जा समाई।
आज नाट्य, नाद, नाच ,गान के स्वर, आदिनाथेश्वर!
कर रहे पग पग पर मानव को प्रखर!!
तुम प्रखरता के शिखर पर
बैठी संवेदना हो,
साक्षात सत्य हो,
परम कल्याणकारी हो।
स्वयं में सुंदरता का सार हो।
तुम्हें मेरा नमन।
हे सत्यं शिवम् सुंदरम के प्रणेता।!
तुम्हीं सृष्टि की दृष्टि हो ।
तुम्हारे भीतर समाया है काल।
तभी तुम महाकाल कहलाते हो।
यही काल बनता जीवन का आकर्षण है ,
जो जीव , जीव को अपनी ओर खींचता है।
मृत्यु का संस्पर्श कराकर
भोलेनाथ ब्रह्मांड की चेतना से
जीवन के कल्पवृक्ष को सींचते हैं !!
हे भूतनाथ !
नाद तुम्हारा
जीवन का संवाद बने,
साथ ही यह समस्त वाद विवाद हरे ।
सृष्टि के कण कण से
जीव के भीतर व्यापी चेतना का
आप में समाई महाचेतना से संबंध जुड़े।
ओ' आदियोगी भगवान!
तुम्हारे दिशा निर्देशों पर
सब आगे बढ़ें,
जीवन के भीतर से अमृत का संधान करें।
तुमसे प्रेरित होकर
विषपान करने में सक्षम बनें।
जीवन में ज़हर सरीखे कष्टों को सहन कर सकें।
तुम्हारे भक्त अमर जीवन की चाहत से सदैव दूर रहें।
वह मृत्यु को अटल मानकर
अपने भीतर बाहर की तमाम हलचलों को भूलकर
अपने और आप को खोजने का प्रयास करें।
आपको खोजने की खातिर सदैव लालायित रहें।
हे आदिनाथ!
आपको क्या कहूं?
आप अंतर्यामी हैं।
सर्वस्व के स्वामी हैं।
हम सब जीवन धारा के साथ बहते रहें।
आपकी कृपा में ही मोक्ष को देखें ।
सभी आपकी चेतना को
जानने और समझने की चेष्टा करते रहें।
२४/०२/२०१७.