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=== Back का सिलसिला ===

Back का सिलसिला
संग चलने लगा
        ऐसा सोचा न था !!
ईस्क है पाने खोने का
एक सिलसिला
ऐसा सोचा न था !!
pass वो हो गई
Back मुझ को मिला !!
ऐसा सोचा न था !!

notes मै ने लिखा
पर पढी यार वो
ऐसा सोचा न था !!
प्यार मे मुझ को कैसा
दगा मिल गया !!
ऐसा सोचा न था !!

जब थी नजरे मिली
Back एक मे लगा
जब मिले तो दो – दस,
Back ढोना पडा !!
ऐसा सोचा न था !!

अब तो छे Back है
हर semester मिले
ऐसा सोचा न था !!
हम भी बेसर्म सा
मुस्कूराने लगे !!

बात घर तक गई
तो ये दंगा हुआ
मम्मी का प्यारा बेटा
लफन्गा हुआ !!

दादी की गालिया
तो कहर बन पडी
मेरी ध्यान फिर भी थी
उन पे अडी !!


Back लगता था तब
अब तो ree लग रहा
ऐसा सोचा न था !!
फिर मेरी हौसलो कि
हवा खुल गई !!


pass वो हो गई
fail मै हो गया !!

Back का सिलसिला
संग चलने लगा
ऐसा सोचा न था !!

सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :-  17-03-2015
hindi poem on back paper
लत दौलत की

लत दौलत की हम को
है कहाँ पर ले आई
आईने भी जहाँ पर
झूठी बात करते है ॥


जो भर कर खतो में
प्यार भेजा करते थे ।
उनकी चिठ्ठीयों का
मोल हम लगा बैठे ॥


पहले माँ बाप ही
सोहरत सभी थे , ऐ साहब
क्यों ?? दौलत को ही
माँ बाप हम बना बैठे ॥

लत दौलत की हम को
है कहाँ पर ले आई
अपनो की हीं शौदा
हम लगाने आये हैं ॥


जिन बुजुर्गो कि दुआ
हर खुशी में शामिल थी
उनकी हीं हँसी को
हम हीं बेच आये है ॥


जो माई की लोरीयाँ,
हमें सुलाती थी ।
वो पापा की थपकीयाँ,
जो दम धराती थी ।
वो दादी की छोटी सी कहानी
परीयों की,
भाइ की हँसी जो
हम को सबसे प्यारी थी ।
आज इन सब को हम दौलत मे तौल आये है ॥


आरजु थी कभी जो
मैं भी सेवा माँ की करुं
पर दौलत को हीं
माँ बाप सब बना बैठे ॥
लत दौलत की हम को
है कहाँ पर ले आई ॥


- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :- 18 / 05 /14
'''''''''''''''''  ये कैसी आजादी  ?? '''''''''''''''
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''­''''''''''''''''''''''''


आजाद कहाँ हम ?
ये कैसी आजादी ?
गुलामों से बढ कर
हमारी बरबादी ॥

दिया एक भी जला नहीं किसी घर में,
गरीब हम , क्या खाएँ, चूल्हा ठंढा घर में,
मिटे कैसे भूख जो पलती उदर मे।
बाहर भी जाएं तो खौफ जिगर मे,
आतंकी अनहोनियाँ नगर मे, ड्गर मे ॥

आजाद कहाँ हम ?
जब सुरसा महँगाई
निवाले पे खतरा
सरकारी बेहयाई ॥

समझों किस हालत में देश अपना आज है ।
लोग यहाँ चूहे तो नेतागण बाज है ॥
देश की स्टीयरिंग थामे घोटालेबाज है ॥
जो करे विरोध उस पर गिरती गाज है ॥
बस कहने को देश में जनता का राज है ॥


- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :- 07 / 11 / 2010
लडकी जो थी !!

तुझे तो पता था ,
कि ये दुनिया दरिन्दो की है ।
फिर क्योँ  लाई मुझे ??

क्योँ ??
जन्म दिया मुझे !!
मुझे पता भी न था
की ईज्जत क्या होती है ।
तब तक लुटली मेरी आबरु,
दरिन्दो ने !!

मै तो गिन भी न पायी थी !!
अपने उम्र की साल 3 थे या 4
गिन कर भी क्या करती

लडकी जो थी !!
ना किसी ने बेटी माना
न बहन !!
बस हवस के परवान चड़ गयी !!

माँ मै दर्द कैसे कहूँ अपनी
कैसे मिलाऊ नजरे तुमसे
अब तो मै मौत के हवाले हूँ ।

खुश हूँ,
मौत को पाकर
यहाँ सूरक्षा है ,
यहाँ दरिन्देँ नहीँ ,
न हीं लोग ताना करते है ,
पर माँ तेरी याद आती है !!

पर क्या करूँ
तु भी तो रो रही होगी ,
माँ मै-भी रो रही हूँ !
शायद और कुछ ना कह पाऊँ …… !!


चल बता पापा कैसे है ,
क्या मेरे हक का ताना,
लोग उन्हे कसते है !!
कुछ ना छिपा सब बता
कितने दिनों से वो बाहर नहि गये ??
मुझे पता है ,
वो भी रो रहे होगें
उनसे कहना मेरी कोई खता न थी ,
मै तो जगने से पहले हीं सो चुकि थी !!
वो आये थे मेरे पास
सो जाने के बाद,
महसूस हुआ मुझे
वो चुप से थे
रो रहे थे,
मेरे पापा मै कहना भूल गई !!
आप बहुत प्यारे हो,
पर रोते हुये अछे नही लगते !!

भैया को कहना,
वो ना रोये, सब तो है ॥
क्या हुआ मै ना रही
भैया ,
तोर देना वो राखी का कंगन
जो आप ने उपहार मे दिया था ,
क्या करोगे उसका
मै जो ना रही !
वो आप को मेरी याद दिलायेगी !!

माँ मै यहाँ सुरक्षित हूँ
पर भैया कि याद आती है !!
मुन्नी की याद आती है !!
संभालना उसको दरिन्दो से,
या भेज दे मेरे पास !!
माँ बहुत दर्द होता है !!

माँ एक बात कहूँ ??
सबकी याद आती है ,
क्या ?? सब मुझे भूल गये !!
और वो चाचा,
वो सब जो कैन्डल मार्च किये थे
अब भी आते है ??
क्या आज मै बस समाचार बन गई ?
पर मेरा दर्द ,
विचार योग्य था !!
समाचार ??
माँ दुनियाँ ऐसी क्यों ?? है
मै तो बस . . . . . !!
अब बस . . . . . !!
सोछ कर भी . . . . . माँ
मेरी . . . . .  माँ
तेरी याद आती है !!

कवि :- सूरज कुमार सिँह
दिनाँक :- 24 / 12 / 2014
~~~~~~~~~~~~~~ इस बरस की होली  ~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

इस बरस की होली
कुछ याद आ रहा है ।
बचपन की यादे मुझ को
मन तक हिला रहा है ॥

पापा के रंग प्यारे
मम्मी की वो मलाई ।
छोटे – छोटे पिचकारी
संग छोटे बहन भाई ॥

होली की वो सरारत
सूबह से रात करना ।
राहों में खड़े होकर
पिचकरी में रंग भरना ॥

दोस्तो पे रंग लगाकर
फिर रुठना मनाना ।
उन छोटे – छोटे पल मे
खुद को भूल जाना ॥

कल पहर से मुझको
वो सब सता रहा है ।
इस बरस की होली
कुछ याद आ रहा है ॥

रंगो के रंग मे रंग कर
दो – चार बार नहाना ।
मम्मी पापा का गुस्सा
फिर प्यार से मुस्काना ॥

थे दो रुपये के छुट्टे
दौड़ कर दुकान जाना ।
दो रुपये के रंग मे
खुद को भूल जाना ॥


बचपन की वहीं होली
क्यों ? याद आ रही हैं ॥


लेखक :- सूरज कुमार सिँह

दिनांक :- 15 / 03 / 2014

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~­~~
'''''''''''''''''  ये कैसी आजादी  ?? '''''''''''''''
''''''''''''''''''''''''''''''''


आजाद कहाँ हम ?
ये कैसी आजादी ?
गुलामों से बढ कर
हमारी बरबादी ॥

दिया एक भी जला नहीं किसी घर में,
गरीब हम , क्या खाएँ, चूल्हा ठंढा घर में,
मिटे कैसे भूख जो पलती उदर मे।
बाहर भी जाएं तो खौफ जिगर मे,
आतंकी अनहोनियाँ नगर मे, ड्गर मे ॥

आजाद कहाँ हम ?
जब सुरसा महँगाई
निवाले पे खतरा
सरकारी बेहयाई ॥

समझों किस हालत में देश अपना आज है ।
लोग यहाँ चूहे तो नेतागण बाज है ॥
देश की स्टीयरिंग थामे घोटालेबाज है ॥
जो करे विरोध उस पर गिरती गाज है ॥
बस कहने को देश में जनता का राज है ॥


- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :- 07 / 11 / 2010
-: कहानी बने ?? :-

हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

मैं तड़पता रहु,
तुम तड़पती रहे
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बने !!

मेरी यादों मे तुम
युं न आया करो
मै कहीँ ?? पर रहूँ
मन कहीँ पर रहे ॥


तेरे बिन मेरी हालत है
कुछ ईस कदर
मीन जो रेत पर
जल बिना हि रहे  !!

मेरी ख्वाबों मे दस्तक
दिया आपने
कि लगा लखों परीयाँ,
मुझे मिल गई ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
तब लगा निंद मुझको
था कितना हंसी ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहनी बने ??


फिर से मैं सो गया,
ख्वाब देखुं तेरी
ख्वाब मे हीँ मुझे
गुद गुदी हो गई !!

तेरी यादो में मैं
कुछ यूँ खोया रहूं !!
मेरा मन है कहीं
तन कहिं पर रहें ??

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥


हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 16 / 10 / 2014
वो तुम्हीं हो परी

रात फिर ख्वाब मे
एक हसीना मिली
दिख रही नूर सी
हर कली से भली
       खो गई फिर कहाँ
  है मुझे क्या पता

होठ अंगुर से
आँख है फुलझडी
वो तुम्ही हो परी
वो तुम्ही हो परी

आँख मे है नशा
हर अदा मे मजा
मै तो सोया रहा
तुझ्मे खोया रहा

रात थी ख्वाब मे
जो हसीना मिली
वो तुम्ही हो परी
वो तुम्ही हो परी  ॥

सूरज कुमार सिहँ
दिनांक – 24 – 07 - 2015
मैं लिखता नहीं  !!

मैं लिखता नही
स्याही हिं बस बहाता हूँ ,

कविता कल्पना
है चिज बड़ी ए शाहब
मैं मन से बनें
दो शब्द गुनगुनाता हूँ ॥

मैं बस शब्द का
सृगार यार करता हूँ
अपने अनूभवों का
रंग उसमें भरता हूँ ॥

झूठी हर कहानी
हीं सरल सी होती है
बस यह सोच कर ही
दो शब्द गुनगुनाता हूँ ॥
मै किखता नहीं
स्याही हिं बस बहाता हूँ ॥

कितने हिं कलम का
मात्र मै अपराधि हूँ
उनके रक्त का
अपमान किया है, मैनें,

अंधी जनता ,
सच्ची कहानी
लिख-लिख कर  
कितने स्याही  को बद्नाम
किया है | मैंने
कितनो कि कलम,
साम्मान ले रही सबकी
ह्त्या को भी,
वलिदान कहा है जिसनें
वाश्ना को कहे जो
रंग नया जिवन कि
अपराधों को विरता का तथ्य देते है ॥

पर मेरी कलम
यह सब कला में असफल है ।
ऐसा लिखने से पहले,
टुट जाती है ।
मैं लिखता नहीं
स्याही हिं बस बहाता हूँ ।



कबिता कल्पना
है चिज बड़ी ए शाहब,
मैं मन से बने
दो शब्द गुनगुनाता हूँ ॥

- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक  :- 06 / 09 / 2012
तुझे जो याद करता हूँ
माँ ??
मैं आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती है
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।।

मैं बालक हूँ । तु समझी ना
मैं कटी हो गया तुम से  ।
आंऊ जब भी HOSTEL मैं
तो क्यूँ आँसू बहाती हो ।।

वो पल जब याद आते है
मैं कितना टूट जाता हूँ ।
रख PHOTO सीरहाने में
मैं तुम से रूठ जाता हूँ ॥

मुझे भी पाता है की
माँ तु मुझ से प्यार करती हैं ।
तभी तो तु अकेले मे रोया
हर बार करती है ॥

मगर मै रो नही सकता ,
ये पापा ने बताया है ।
मै लड्का हूँ
कटु ये शब्द मुझ को क्यों सीखया है ॥


घनी है रात HOSTEL में
सुबह होने चला आया ।
समय अब 3:40 हैं
मगर सूरज न सो नही पाया ॥

माँ…
मैं आज भी रातो
में भी बस आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती हैं
मैं खुद को भुल जाता हूँ ॥

लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 06 / 11 / 2013
~~~~~~~~~~~~~ - ग्राम की शाम -  ~~~~~~~~~~~~~

था सूर्य डूबा या डूब रहा
बस उसी की संध्या बेला में ।
जुगनू थे सभी जगमगा रहे
मेरी ग्राम की संध्या बेला में ॥


प्रतित हुआ सबको ऐसा
तारे उतरे इस मेला में ।
रजनी भी बैठे थी देख रही
मेरे ग्राम की संध्या बेले को ॥


उस शाम की थी
कुछ सान अलग ।
अंधेरो की,
पहचान अलग ।
जगमगा रहे नभ मे जुगनू,
धरा पर थी तारो की चमक ॥
नजरे सबकी वहाँ देख रही,
पर हर बैथे थे अकेला में ॥


थी द्र्ष्य अलग अद्भूत जैसी
मेरे ग्राम की सन्ध्या बेले में ।

चह्के पंक्षी, बहके थे पवन
थे फूल सुखे उस संध्या को
लेकिन फिर भी महके गुलशन ।
मेरे ग्राम की संध्या बेले में ॥


-सुरज कुमर सिहँ
दिनांक :- 17 / 04 / 2009

'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''­''''''''''
मै गरीब क्य खाना खाऊँ !!

मै गरीब क्या खाना खाऊँ
सोच रहा यह दो दिन से !
घर कि चुल्हा टूटी है !
किस्मत भी अपनी फूटी है !!


जो गिरा मिला रोटी मुझको
वो भी कुत्ते की जुठी है !!


मै क्रोधित हूँ ।
मै भूखा हूँ ।
किस्मत से अपनी रुठा हूँ !!
पर हँसता हूँ । मै मानव हूँ
मैं मनव हूँ ??
हाँ हूँ शायद
यह सोच-सोच हीं रोता हूँ ॥


मेरी मईया भी भूखी है ,
पापा भी भूखे दो दिन से !
भैया कि नौकरी छुटी है ,
ये आरक्षण की तोफा है!!


वो पढे लिखे है काविल है !!
आरक्षण उनके मित्रो को
हम जातिवाद मे शामिल है !!
वो रोते है पर छिप-छिप कर
लोगो का ताना सहते है ।


पर गले लगा कर वो मुझको
बस एक बात ही कहते है,
हम ऊची जति के वारीश है ??
ईसीलिये तो भूखे सोते है !!


क्या ?? जतिवाद ही करण है
हूँ सोच रहा मै दो दिन से
मैं गरीब क्या खाना खाऊँ
सोच रहा हूँ दो दिन से ॥


खाने की खुशबु आती है
तब भूख और बढ़ जाती है !
पर चुप है, अपने घर मे हम
गम का पकवान बनाते है !!
पर भूख अभी भी बाकी है


क्या गरीब खाना खाते है
सोच रहा मैं दो दिन से ॥



- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 16 / 06 /14
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
     गुड़िया……॥
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
कहानी अब तेरी मेरी
मैं युँ किसको सूनाऊँगा ।
तेरी मासूमियत को मैं
समझ शायद ना पाऊँगा ॥

तू है भोली बहुत गुडिया
मैं तुम से कह नहि सकता
तेरी मासूमियत के छाव बिन
मैं रह नहि सकता ॥

युँ तेरी अन कही बातें
क्युँ मुझ को याद आती है
निगाँहो नये सपनें
सदा हर दिन बनाती है ॥

क्युँ सपनों के हकिकत को
तु अब तक जान ना पाई ।
वो गम कि एक परछाई
तु क्युँ पहचान ना पाई ॥

वो गम की एक गगरी बस
खुशी का तु खजाना हैं ।
तभी तो आज सूरज भी
यहाँ तेरा दिवाना है ॥

बनी तु राग सरगम की
सूरा का पात्र मै गुडिया ।
सफलता की है सूचक तु
तेरा दुर्भग्य मै गुडिया ॥

कभी तु हो ना हो मेरी ॥
सदा मैं हूँ तेरा गुडिया ॥

                     लेखक :- सूरज कुमार सिँह

दिनांक :- 14 / 02 / 2014
-: माँ , तुझे जो याद करता हूँ ॥ :-

तुझे जो याद करता हूँ
माँ ??
मैं आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती है
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।।

मैं बालक हूँ । तु समझी ना
मैं कटी हो गया तुम से  ।
आंऊ जब भी HOSTEL मैं
तो क्यूँ आँसू बहाती हो ।।

वो पल जब याद आते है
मैं कितना टूट जाता हूँ ।
रख PHOTO सीरहाने में
मैं तुम से रूठ जाता हूँ ॥

मुझे भी पाता है की
माँ तु मुझ से प्यार करती हैं ।
तभी तो तु अकेले मे रोया
हर बार करती है ॥

मगर मै रो नही सकता ,
ये पापा ने बताया है ।
मै लड्का हूँ
कटु ये शब्द मुझ को क्यों सीखया है ॥


घनी है रात HOSTEL में
सुबह होने चला आया ।
समय अब 3:40 हैं
मगर सूरज न सो नही पाया ॥

माँ…
मैं आज भी रातो
में भी बस आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती हैं
मैं खुद को भुल जाता हूँ ॥

लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 06 / 11 / 2013
-: कहानी बने ?? :-

हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

मैं तड़पता रहु,
तुम तड़पती रहे
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बने !!

मेरी यादों मे तुम
युं न आया करो
मै कहीँ ?? पर रहूँ
मन कहीँ पर रहे ॥


तेरे बिन मेरी हालत है
कुछ ईस कदर
मीन जो रेत पर
जल बिना हि रहे  !!

मेरी ख्वाबों मे दस्तक
दिया आपने
कि लगा लखों परीयाँ,
मुझे मिल गई ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
तब लगा निंद मुझको
था कितना हंसी ॥

निंद से जब जगा
बस अंधेरा ही था
फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहनी बने ??


फिर से मैं सो गया,
ख्वाब देखुं तेरी
ख्वाब मे हीँ मुझे
गुद गुदी हो गई !!

तेरी यादो में मैं
कुछ यूँ खोया रहूं !!
मेरा मन है कहीं
तन कहिं पर रहें ??

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥

मै तड़पता रहूँ
तुम तड़पती रहो
हम दिवानों कि ऐसी
कहानी बनें ॥


हम भी मजबूर है,
तुम भी  मजबूर हो !!
हम बहुत दूर है
तुम बहुत दुर हो !!

फ़िर मोह्ब्बत कि कैसे
कहानी बने ??

- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 16 / 10 / 2014
-: माँ , तुझे जो याद करता हूँ ॥ :-

तुझे जो याद करता हूँ
माँ ??
मैं आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती है
मैं खुद को भूल जाता हूँ ।।

मैं बालक हूँ । तु समझी ना
मैं कटी हो गया तुम से  ।
आंऊ जब भी HOSTEL मैं
तो क्यूँ आँसू बहाती हो ।।

वो पल जब याद आते है
मैं कितना टूट जाता हूँ ।
रख PHOTO सीरहाने में
मैं तुम से रूठ जाता हूँ ॥

मुझे भी पाता है की
माँ तु मुझ से प्यार करती हैं ।
तभी तो तु अकेले मे रोया
हर बार करती है ॥

मगर मै रो नही सकता ,
ये पापा ने बताया है ।
मै लड्का हूँ
कटु ये शब्द मुझ को क्यों सीखया है ॥


घनी है रात HOSTEL में
सुबह होने चला आया ।
समय अब 3:40 हैं
मगर सूरज न सो नही पाया ॥

माँ…
मैं आज भी रातो
में भी बस आँसू बहाता हूँ ।
जो तेरी याद आती हैं
मैं खुद को भुल जाता हूँ ॥

लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 06 / 11 / 2013
उनको पूजु है मन अब मेरा हो रहा
जन्म दाता है जो , जन्म जिसने दिया
है वो नर,
पर नारायण सा लगने लगे ।
सोये हम इसलिए जब वो जगने लगे ।
माँ पिता के कई रूप अंजान है
मै पुजारी हूँ
वो मेरे भगवान है ,
इस जहाँमे कोई पुष्प
है ही कहाँ ,
इनके चरणों में जो लाके
मै डाल दू ॥

मेरा तन मन समर्पण
मेरी आतमा,
जिसको चाहो चूनों अब
मेरी भोली माँ

मेरे पापा ,
मै बालक
कहूँ और क्या ??
रक्त हर तरल
आपके पग धरू ॥

जन्म दाता,
ये भी भेट कम लग रहा
पर मै हूँ बालक तुम्हारा
करू और क्या ??

तुझ को पूजु है मन, अब मेरा हो रहा
जन्म दाता है तु, जन्म तुमने दिया ॥

सूरज कुमर सिहँ

दिनांक – 21 – 07 - 2015
नारी के स्म्मान मे

द्रोपदी के चिर हरण से
परिचित कौन नही होगा ?
जहाँ रणों के रणबाँकुर थे
शब्दहीन, थे मौन मौन !!

मान हरण की वही प्रथा
मानो UP दुहराती है !!
लखनऊ के चौराहे मानो
कुरुओं कि है राजमहल,

राहधानी के चौराहो पर
भीड जमाया जाता है
सरे आम यूँ नारी को
जंघे पे बुलाया जाता है,

क्षमा करें,
ईस कलम को तब बेशर्म
होजाना पडता है !!
राजनीती जब नारी को
सरेआम वैश्या कहता है !!

पर,
नारी को स्म्मान दिलाने
दुर्लभ योधा आये है,
12 साल की बची को भी
कामूक स्वर मे बुलाये है !!

इतने पर भी पूर्ण व्यवस्था
मौन दिखाई पडता है,
कई पितामह , कई कर्ण ,
कई द्रोण दिखाई पडता है !!

अर्जुन के गाँडिव भी लगता
चीर हरण मे सामील है
भृकोदर का बली गदा की
दुर्योदन से सन्धि है,
कलियुधिष्ठिर के धर्मो पर
सत्ता कि परछाई है !!
है लगता मानो चीर हरण में
सामील सारे भाई है ।

कितने वीरों की सूची –
तैयार करुँ बतलाने को ??
जो बात – बात पर आते थे,
अपना स्म्मान लौटाने को

कलम मेरी,
है पुछ रही ?
क्या वो अब भी जिन्दा है
थे बढी तमासा किये कभी
शायद उसपर शर्मीन्दा है ??
नारी हित की बातें अब
बस बातों मे ही जिन्दा है,

देख दुर्दशा नारी की,
कलम मेरी शर्मीन्दा है !!
बस है कवियों से पुछ रही,
क्या ? पत्रकारीता जिन्दा है ?
बस जिन्दा है ?
राजनीती की ईस नीती से
UP मेरी शर्मीन्दा है !!
अब भी ये सब थमा नहीं तो,
कलम मेरी मर जायेगी
पन्ने को कर अग्निकुंड
जौहर अपना कर जायेगी !!

- सूरज कुमर सिहँ
26th  Jul  2016
poem on female
~ ईस्क कि सुरुआत ~

ईस्क सुरुआत तुम ने की
हम बद्नाम हो बैठे !
तुम्हारी आसकी में दर्द का
दरवान हो बैठे ॥

           मेरी हर हँसी पर रात-दिन
           खुशीयों का पहरा था ।
           मिली मुझसे जो तु,
            खुशीयों से हम परेशान हो बैठे ॥

हमारे घर भी खुशीयाँ आके
हर दिन लौट जाती है !!
उन्हे मैं लाख रोकूं पर
            वो मेरी एक नही सूनती ।
            मै थक कर बैठ जाता हूँ ,
            वो हँस कर भाग जाती है ॥

गई तु छोर कर
मेरी खुशी तो छोर जाती तु !
मैं हँसी को खोजते
          गम की गली मे लूट जाता हूँ !!
          खुशी आगे निकलती है
          मैं पिछे छुट जाता हूँ !!

तु शायद भूल जा
लेकिन ,
           मुझे वो याद आता है
           मै सोनु , सोना
           बाबू , बच्चा तुमहारा था ।
           इन सब ऐसे कोइ कैसे भूल जाता है ॥

मैं रोता हूँ , बिलकता हूँ !!
कोई चुप नही करता,
तेरे बेबी सर गोदि में
अपने अब नहि धरता ॥

तेरी यादो में खुद को
कभी मैं ढुढ्ने निकला !!
मगर अपने ही आसु में
मै हर दिन डूब जाता हूँ ॥

- सूरज कुमर सिहँ
दिनांक :- 14 / 06 /14
missing some one
-: मै मीनाक्षी :-

मै मीनाक्षी ,
भयभीत हूँ , मौत के बाद भी
मौत का द्रिष्य,
अद्भूत नजारा था,
गैरों के लिये !!

पापा,
मै अब नही,
संभाल लेना खुद को ,
बस आप ही , अब माँ का
सहार हो !!

माँ मुझे आंचल से झाप देती
घर से चौक की दूरि पैदल ही नाप लेती,

मै बहुत कुछ करना चाहती थी
पापा को कैंसर है
ये गम तो, पहले ही मार डाला था
पर आपके लिये
हर रोज मरना चाहती हूँ !!

पाँच दिन का जोब
कहाँ कुछ कमा पाई थी
पापा मै आप को बचालूगी
बस ये दिलासा दिला पाई थी !!

तब तक मुझ पर
चकूओं का 35 वार,
माँ,
लगा सब चुट रहा था
हर चोट के साथ
कई सपना टूट रहा था !!

माँ – पापा आपकी याद आ रही थी ,
आप दोनो कि चिन्ता
मैत से पहले मारी जा रही थी !!

पापा,
मै मर कर भी जिन्दा रहना चाहती हूँ
आप कि सेवा करना चाह्ती हूँ ,
पर ये हो नही सकता,
पर आपकी चिन्ता
मुझे अब भी सताती है !!
पापा क्या आपको मेरी याद आती है ??

मेरे सपने , मेरी जिन्दगी
सब सीमटती जा रही थी
तब भी मुझे मेरी गलती
न याद आ रही थी !!
किस गुनाह का ये सजा थी
क्या लड्की होना,
इतनी बडी गुनाह थी !!

अगर हाँ,
तो मै फिर ये गुनाह करना चाहती हूँ !!  

- सुरज कुमर सिहँ
दिनांक - 19/ 07 / 2015
!! कई दिनों के बाद !!
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कई दिनों के बाद कलम ने
परिचित सा व्यहार किया
कई दिनों के बाद कलम ने
है खुद को सृगार किया !!
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कई दिनों के बाद कलम ने
सूरज तुझे बुलाया है ?
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कई दिनों के बाद कलम
कुछ परिचित प्रश्न उठाते है
कई दिनों के बाद कलम ने
दर्पण सा व्यहार किया !!
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प्रश्न कलम के लाखो है
पर मै किस पर बिचार करुं
जतीबाद पर लिखूँ
या मै नारीबाद पर वार करुं !!
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राजनिती के इन मुद्दो पर
श्याही नही बहाऊँगा
राजनिती के कुछ मुद्दो को
राष्ट्रवाद तक लाऊँगा !!
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- सूरज कुमार सिँह
01-11-2016
After long time my pen treated me as a known,
After long time my pen Reacts as a Mirror !!
Few Lines Of My New Poem....
श्याम तु सौंप दे

राधिका की सरल स्नेह न पा सकूँ
रुक्मिणी की नहि, कोई युक्ती कुरुँ
मुझ को मेरी परी श्याम तु सौंप दे
है राधिका वो मेरी, रुक्मिणी भी वही !!

जब भी वो हसी, राधिका सी लगी
की जो सृंगार वो, रुक्मिणी सी लगी
मेरी मीरा वही, मेरी संसार है !!

करदे मेरा उसे, उसको मेर बना
श्याम सूरज की हर सांस, है बस परी
मुझ को मेरी परी श्याम तु सौंप दे
है राधिका वो मेरी, रुक्मिणी भी वही !!

सूरज कुमर सिँह
31-03-2016
Today,
When I was bowing to Shyama for u mah love
some sacred utterance came in mah mind by which i made a acrostic for Us.
I wanted to be yours Chaliya.
You R mine
I am Yours , mah Love.

— The End —