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गुड़िया……॥
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कहानी अब तेरी मेरी
मैं युँ किसको सूनाऊँगा ।
तेरी मासूमियत को मैं
समझ शायद ना पाऊँगा ॥
तू है भोली बहुत गुडिया
मैं तुम से कह नहि सकता
तेरी मासूमियत के छाव बिन
मैं रह नहि सकता ॥
युँ तेरी अन कही बातें
क्युँ मुझ को याद आती है
निगाँहो नये सपनें
सदा हर दिन बनाती है ॥
क्युँ सपनों के हकिकत को
तु अब तक जान ना पाई ।
वो गम कि एक परछाई
तु क्युँ पहचान ना पाई ॥
वो गम की एक गगरी बस
खुशी का तु खजाना हैं ।
तभी तो आज सूरज भी
यहाँ तेरा दिवाना है ॥
बनी तु राग सरगम की
सूरा का पात्र मै गुडिया ।
सफलता की है सूचक तु
तेरा दुर्भग्य मै गुडिया ॥
कभी तु हो ना हो मेरी ॥
सदा मैं हूँ तेरा गुडिया ॥
लेखक :- सूरज कुमार सिँह
दिनांक :- 14 / 02 / 2014