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पहले ज़रुरत थी आदमी को, केवल रोटी- कपड़ा - मकान
आज लग रहा है यह नारा, कि ' मेरा मोबाईल महान '

क्रांति लाई है इसने, आया युग जानकारी का
घर बैठे काम हो गए, नहीं इंतजार अब बारी का
ई - कॉमर्स से घर पहुंचते हैं छोटे - बड़े सामान
आज लग रहा है यह नारा, कि ' मेरा मोबाईल महान '

बना यह घर का सदस्य, बसा यह सबके दिल में
आने लगा यह मैयत में, आने लगा यह महफ़िल में
आज इसने है संभाली सुख - दुःख की कमान
आज लग रहा है यह नारा, कि ' मेरा मोबाईल महान '

चाहे पास हो या दूर, पल में संपर्क बनता है
जग बना एक छोटा गांव, जिसके बने हम जनता हैं
हुआ यह इतनी तेज़ी से, कि सब हो गए हैरान
आज लग रहा है यह नारा, कि ' मेरा मोबाईल महान '

एक रात में हुए कई का इतना बड़ा नाम
एक रात में फैला दुनिया में, उनका छोटा - बड़ा नाम
बनी यह तेरी - मेरी, कभी चढ़ाव, कभी ढलान
आज लग रहा है यह नारा, कि ' मेरा मोबाईल महान '
दिनभर के थकान को एक झटके में खोने दो
हो गई है रात, अब यार मुझे सोने दो

आंखे हुई बंद तो अलग सा एहसास हुआ
बिस्तर होता आम है, पर उस समय वह खास हुआ
सपनों के ठेले को मुझे खुद ढोने दो
हो गई है रात, अब यार मुझे सोने दो

हैं पैसे हराम के, तो यह आपके साथ नहीं
आती है यह सबको, ऐसी यह बात नहीं
मैं इसे चाहता हूं, मुझे ईमान बोने दो
हो गई है रात, अब यार मुझे सोने दो

कोई जाता नौ को, कोई बारह को जाता है
किसी को आए पल में, तो किसी को वक़्त लगाता है
अगर जागता हुआ नहीं, तो मुझे नींद में तो रोने दो
हो गई है रात, अब यार मुझे सोने दो
वह थी अंदर और मैं था बाहर, कर रहा था मैं सबर
बाहर आए फिर डॉक्टर साहब, दिया बाप बनने की खबर

सुनकर यह बात मैं दौड़कर अंदर आया
बीवी के हाथों में उसको मैंने रोता हुआ पाया

पत्नी बोली मुझे कि बच्चा मुझ पर गया है
मैंने कहा उसको कि नाक तुझ पर गया है

लाऊं मैं पेड़े या लाऊं लड्डू, कौनसी लाऊं मैं मिठाई
लगा जैसे हुआ पुनर्जन्म मेरा, सारे दुखों की हुई बिदाई

पहला पोता था मां-बाप का, जब उन्होंने लिया इसे हाथों में
खिल उठा उनका चेहरा, जैसे खिले रजनीगंधा रातों में

यह नाम करेगा बड़ा, यह काम करेगा बड़ा
पूरी हमारी अभिलाषा तमाम करेगा बड़ा

दुआ यह उसने सभी से पाया, कि हमेशा सलामत उसकी जान हो
लेकिन मैंने सोचा केवल यही, कि यह नेक और सच्चा इंसान हो
तेरे दिल में मैं आऊं बन कर मेहमान
तू मेरी चांद और मैं तेरा चंद्रयान
है नहीं मेरी कोई सगी बहन, फिर भी लिखता हूं यह कविता
रिश्ता है बहन का, बहती हुई एक सरिता

मैं नहीं समझा पाऊंगा भाईयो, क्या होता है रिश्ता बहन का
कैसी स्थिति थी हिरण्यक्यपु की, जब दिन था होलिका दहन का

क्या होती है बहन? कैसा होता है यह रिश्ता?
इसमें होता है कोई स्वार्थ, या होती है सच्ची निष्ठा?

सुने बहुत सारे गाने, जो बहन के बारे में आते हैं
जिनकी नहीं है कोई बहन, वे कैसे ये बाते समझते हैं

छोटी कहलाती छुटकी थी, बड़ी कहलाती है दीदी
पहली थी अपनी घर की लक्ष्मी, अब होगी किसी और की निधि

तो क्या है ऐसी कोई कुमारी, जो बनाएगी मुझे भाई
बांधेगी मुझे राखी, आज सूनी है मेरी कलाई
पूरा कर पढ़ाई अपनी, लिया मैंने अपना पहला काम
थी नौकरी मेरी पहली, इसलिए नहीं थी मेरे लिए यह बात आम

काम करता था मैं दम लगाकर, मेरे साहब को यह बात अच्छा लगा
लेकिन था मैं एकदम नया नवेला, इसलिए काम मेरा कच्चा लगा

बीत गया एक महिना, आज पहली तारीख आई है
सभी उत्साहित थे, मैं भी, क्योंकि तंख्वा लाई है

आया खाता मैं पहला पगार, एहसास हुआ ज़िम्मेदारी की
याद आया परिवार मेरा, याद आई मुझे यारी की

तो सोचा मैंने आज अभी, क्यों न एक महफ़िल हो जाए
पुराने बुरे दिन याद रखना, एक चुटकी में मुश्किल हो जाए

तो रखी मैंने एक छोटी महफ़िल, आए दोस्त परिवार मेरे
खुश था मैं बहुत तो, लुटाया मैंने हज़ार मेरे

तो आगे का पगार जब मिलेगा, उसको अच्छी तरह बचाऊंगा
इज़्ज़त होगी जब मेरी, तब एक सुंदर सी बहू लाऊंगा
हे शिव शंभू, आपकी महिमा अपरम्पार है
हमारे तो हैं दो हाथ, आपके हज़ार हैं

आपकी जटा से तो गंगा बहती है
आप जैसा वर मिले, यह हर लड़की कहती है
आपसे मिलने बद्रीनाथ, सभी तैयार हैं
हमारे तो हैं दो हाथ, आपके हज़ार हैं

आपके गले उतरने से ज़हर भी रुक जाता है
अपके सामने आकर पूरा संसार झुक जाता है
भक्तों के कष्ट दूर करने आप नंदी पर सवार हैं
हमारे तो हैं दो हाथ, आपके हज़ार हैं

प्रथम पूज्य देवता आप ही का तो अंश है
आपकी उनकी कृपा से चल रहा सभी का वंश है
मां जदम्बा जगजननी आप ही का प्यार हैं
हमारे तो हैं दो हाथ, आपके हज़ार हैं
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