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Jun 2020
इन्सान की ये फितरत है अच्छी खराब भी,
दिल भी है दर्द भी है दाँत भी दिमाग भी ।
खुद को पहचानने की फुर्सत नहीं मगर,
दुनिया समझाने की  रखता है ख्वाब भी।

शहर को भटकता तन्हाई ना मिटती ,
रात के  सन्नाटों में रखता है आग भी।
पढ़ के हीं सीख ले ये चीज नहीं आदमी,
ठोकर के जिम्मे नसीहतों की किताब भी।

दिल की जज्बातों को रखना ना मुमकिन,
लफ्जों में  भर के पहुँचाता आवाज भी।
अँधेरों में छुपता है आदमी ये जान कर,
चाँदनी है अच्छी पर दिखते हैं दाग भी।

खुद से अकड़ता  है खुद से हीं लड़ता,
जाने जिद कैसी है  कैसा रुआब भी।
शौक भी तो पाले हैं दारू शराब क्या,
जीने की जिद पे मरने को बेताब भी।
ajay amitabh suman
Written by
ajay amitabh suman  40/M/Delhi, India
(40/M/Delhi, India)   
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     Jayantee Khare, Piya, --- and Shrika
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