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Bhakti
Poems
Jul 2018
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।
बरसाती है नयन घटा , अम्बर जयकार गाता होगा
लहू से सींची माटी का ,सीना चौड़ा हो जाता होगा
टूटती होगी चूड़ियाँ पर,आँखो से गर्व झलकता होगा
पिता के साये से जुदा,बचपन कोने में तड़पता होगा
हाथ जोड़े ईश्वर राह पर खड़ा अश्रु बहाता होगा ।
जब माँ का वीर लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।
होली के रंगों के बीच ,वो घर बेरंग रह जाता होगा
अंधियारी होती दीवाली,जो चिराग बुझ जाता होगा
खेलने की उम्र में पिता की अर्थी उठाता होगा ।
श्रृंगार करता वो हाथ जब सिंदूर मिटाता होगा ।
चीखती भारत भूमि , रक्त से आँचल नहाता होगा ।
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।
बूढ़ी माँ जब संतान की अर्थी को सजाती होगी ।
पुत्र को पिता अग्नि दे नीरस लड़खड़ाता होगा ।
क्या तब भी नेताओँ का दिल नहीं पिघलता होगा
क्या तब भी सवालों का सिलसिला नहीं थमता होगा।
इस गम में शैतान भी,श्रण भर शीश झुकाता होगा
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा ।
जब माँ का सपूत लिपट तिरंगे में आँगन को आता होगा.......
#linesoncrumpledpaper
#hellopoetry
#india
Written by
Bhakti
26/F/India,Indore
(26/F/India,Indore)
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