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Apr 2018
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ना तो वो ही हम से वाकिफ़,
ना तो हम ही जानते हैं !
मंज़िल की बात क्या हो,
राहें भी तो ज़ुदा   हैं !!
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यहाँ दिल-से-दिल का मिलना,
इक इत्तेफ़ाक समझो !
ख़यालों में भी मुसलसल,
सदियों के फ़ासले हैं !!
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यहाँ दोस्तों से  मिलना,
एक हसीन हादसा है !
यहाँ फूलों की है ख़ुशबू,
हर ओर वलवले हैं !!
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ना तलब पसंदगी की,
ना ही कुरबतों की चाहत !
दो लफ्ज़-ए- आफ़रीनी,
बातों के सिलसिलें हैं !!

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(c) deovrat - 04.04.2018
Deovrat Sharma
Written by
Deovrat Sharma  58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)   
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