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Bhakti
Poems
Mar 2018
मैं अपनी रूह के साथ कुछ वक्त बिताना चाहती हूँ ।
तन्हाई में कुछ पल...
खुद को हँसाना चाहती हूँ ।
बंद कमरे में सन्नाटे में क्यों भीड़ का शोर हैं ।
मेरे दर्द की हर चीख़ को कुछ पल दबाना चाहती हूँ ।
जो बीत गया के जख्मों से रूह लहूलुहान हैं ।
वक्त के उस दौर को कुछ पल भुलाना चाहती हूँ ।
मैं अपनी रूह के साथ कुछ वक्त बिताना चाहती हूँ ।
#linesoncrumpledpaper
#hellopoetry
Written by
Bhakti
26/F/India,Indore
(26/F/India,Indore)
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