बरहाल शाम का वक्त था , कुछ भीड़ में टकरा गई| बीते वक्त को सामने देख , तिनका भर घबरा गई| आखो से अश्क छूट गया, पर पलको ने सम्हाला| ओर उसने पूछ लिया Can we have coffee together? सामने बैठा था वो , हर जख्म का जरिया था जो| की पूछ लू क्या गुनाह था जो बेइंतेहा चाहा था? की क्या थी मजबूरियाँ या तुझको बस जाना था? पर रोक के मेरी रूह ने चंन्द लफ्ज में मुझसे कहा, फकत जस्बात भी जाहिर तू कर दे इसके भी वो काबिल नही.......
ओर मेने पूछ लिया....
How's your wife & son? सुनते ही दो लम्हा लब उसके खामोश थे| जैसे कहना चाहता हो कि इश्क तेरा निर्दोष है| की आज भी दिल मे मेरे एक ही मोहोब्बत है| बाहो में बस तू हो आज तक ये हसरत है| ओर एक जवाब आया
ठीक..... तुम बहोत खूबसूरत लग रही हो|
मुस्कुराई मैं , coffee को खत्म किया और कहा अच्छा अब चलती हूँ रोकते हुए उसने कहा बस इतना सा वक्त मेरे लिए ये ही तुम्हारी चाहत है? नम आंखों से मैने कहा ,एक माँ हूँ एक पत्नी हूँ जिम्मेदारियां बहोत है|