माँ तूने जिस दुनिया को बनाया वो आज बदल गई है,
इंसान के अंदर की अच्छाई अब ओझल हो गई है,
फरेब,धोखा जिसकी पहचान है, माँ
माँ तेरी बनाई वो प्यारी मूरत कही खो गई है,
कहीं खो गई है,
माँ जिस इंसान को तूने इतने प्यार से सजाया था,
नव महीने उसे कोख में रखकर उसे बुरे पल से बचाया था,
माँ आज उस इंसान का मन जानवर सी हो गई है,
माँ तेरी बनाई वो प्यारी मूरत कही खो गई है,
माँ हमे इस दुनिया से नफरत सी हो गई है,
माँ हमे ये रंग रूप से नफरत सी हो गई है,
जिस इंसान के लबों पर होते थे कभी प्यार के गीत,
उस इंसान की नीयत आज हैवान सी हो गई है,
हैवान सी हो गई है।
तड़प अपने दिल का माँ मैने इस कलम से बयां किया है,
इस दुनिया को भूल हमने माँ इन पन्नो से प्यार किया है,
माँ आज ये प्यारी धरती भी रूखी हो गई है,
माँ तेरी बनाई वो प्यारी मूरत कही खो गई है,
रो रही आंखें मेरी माँ सांसे थोड़ा थम सी गई है,
अब इंसान का मन नर्क सी हो गई है,
कुछ बुरे लोगों के कारण माँ आज,
वो प्यारी सी मूरत कहीं खो गई है,
कहीं खो गई है।
इस कविता के सभी पात्र मेरे यानी मनीष के अपने विचार है ऐसे किसी भी इंसान से कोई लेना देना नही है।
मैन इस कविता के माध्यम से उस इंसान के बारे में लिखा है जो अक्सर अपनी मिट्टी अपने संस्कार भूल कर किसी सुंदर फूल की पंखुड़िया तोड़ देते है।
मैं वैसे लोगों की कड़ी निंदा करता हूँ।
मनीष कुमार श्रीवास्तव
I have written this poem for whom has lost their culture and go in wrong way,
It's really very sameful for me,
Please being human and for humanity sake don't hurt any person love to all and stay happy