आज राखी है
बहन - भाई के अटूट
स्नेह की साक्षी है।
भाई रक्षा सूत्र बंधवाकर
बहन को रक्षा का संकल्प देता है
यह रस्म पीढ़ियों से
चलती आ रही है ।
घर से बाहर निकाल कर
शायद भाई यह संकल्प भूल जाते हैं
तभी कार्यालय हो, सफर हो ,
या हो अस्पताल बहनें लूटी जाती हैं ।
उसने भी बांधी होगी
किसी को राखी, दिया होगा संकल्प
फिर भी खत्म कर दिया गया
उसके जीने का हर विकल्प ।
कोलकाता, मेरठ या हो जोधपुर
हर जगह राखी तोड़ी गई
एक बहन की गर्दन
नृशंस रूप से मरोड़ी गई ।
आज हर एक राखी
रो कर कह रही होगी
बंद करो यह उपहास
नहीं होता रक्षा संकल्प पर विश्वास ।
राखी में भी आज स्वार्थ की बू आती है
सरकारें मुफ्त यात्राएं करवा कर
बहनों के वोट लेती हैं
जब बारी आती इंसाफ की
वही सरकारें एक दूसरे को दोष देती हैं
पर इंसाफ करने से कतराती हैं ।
क्यों राखी के धागों को
अब बदनाम करते हो
मन के धागों को
क्यों नहीं मजबूत करते हो?