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हर पल तेरी याद सताये
लगता जैसे अब जिया ना‌ जाये
जी तो रहा हूं  इसलिए क्योंकि
जिए बिना तेरी याद कैसे आये ?।
खुशियां झूठ हैं
दर्द अटूट
समझा जिसने
वो गया छूट।।
चलो बुनते हैं कुछ जज़्बात
जुकाम है लगी हुई, होने वाली है रात।
दीवार की ओट में थोड़ी सेंक लेते हैं धूप
जमा हुआ कफ निकल रहा है
सांसों को मिल रही है गर्मागर्म सौगात।
कपड़े लपेटने से सर्दी नहीं जाती
यह तो बस एक दिखावटी सी बात
खाने-पीने से ही अंदर उठती है आग
अंदर की आग से ही दबती शीतल रात।
अंदर की अग्नि होती जब-२ कमजोर
झकझोर देती उम्र करते -२ तहकीकात।
साथी उसको‌ ही जानिए जो ऐसे में
सर्दी को नकारते हुए संभाले हालात
वर्ना यह सर्दी और तारों में डूबीं रात
गिना-गिना के तारे बता देती औकात।।
यह दिल और इसमें चाहत के फूल
भेजे जो तुमने सुबह करते हुए भूल
किया है उन्होंने असर कुछ इस तरह
जैसे जख्मों पर लग गई हो दवा माकूल।।
बहुत हुए बीते जमाने में
पिछले दो दिनों में शरीक
एक दोस्त के घर जाकर लगा
जिंदगी बदलती है तारीख ।
शहर के कोलाहल से दूर
एक बड़ा मनोरम सा घर
बाग-बगीचे,पेड़, झूले और
फ़व्वारे स्वागत को आतुर।
अन्दर बड़ा सा विशाल कक्ष
जिसकी सुविधाएं अति मोहक
इस में बना गुरु का आसन
कर देता सबका धार्मिक रुख।
ना‌ कोई दिखावा ना अंहकार
बाशिंदे करते एक दूजे से प्यार
मिलकर उनसे यों लगता जैसे
यही है प्राकृतिक सा सदाचार।
घर से सब खुश होकर जायें
कहते हैं यही है हमारा उपहार
साधारण होकर भी कितना खास
निकला मेरा यार जमीनी सरदार।।
जो होते हुए भी नहीं आते
उनसे मिलने की कसक
जो नहीं रहे हैं वो आज भी
बसे हुए हैं दिलों में बेशक
यह टीस ही हमें बुला लाती है
देने पुराने दरवाजों पे दस्तक।।
पढ़ाई करो और शादी करो
बच्चों से फिर वही कराओ
पत्थरों की मूर्ति बनाओ
उनको पूजो और मन्नत मांगो
सच में बड़ा मुश्किल है
नहीं तो फिर जंगल में जाओ
पत्थर भिड़ाओ , आग जलाओ
पत्तों का लंगोट बनाओ
झिंगा ला ला हू हू गाओ
सस्ती मस्ती में घास खाओ
खुद से खूंखार जीव मिले तो
उसका निवाला बन जाओ
ज्ञान पढ़ लिया  हो तो
अपने काम लग जाओ।।
😀😀😀😀😀
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