बहुत हुए बीते जमाने में
पिछले दो दिनों में शरीक
एक दोस्त के घर जाकर लगा
जिंदगी बदलती है तारीख ।
शहर के कोलाहल से दूर
एक बड़ा मनोरम सा घर
बाग-बगीचे,पेड़, झूले और
फ़व्वारे स्वागत को आतुर।
अन्दर बड़ा सा विशाल कक्ष
जिसकी सुविधाएं अति मोहक
इस में बना गुरु का आसन
कर देता सबका धार्मिक रुख।
ना कोई दिखावा ना अंहकार
बाशिंदे करते एक दूजे से प्यार
मिलकर उनसे यों लगता जैसे
यही है प्राकृतिक सा सदाचार।
घर से सब खुश होकर जायें
कहते हैं यही है हमारा उपहार
साधारण होकर भी कितना खास
निकला मेरा यार जमीनी सरदार।।