बारिश की बूंदों की टप टप
लगता तू नहा रही छप छप
यह बादलों का गढ़ गड़ शौर
नशा मुझ पर करे घनघोर ।
काले बादल ज्यों तेरी
मदहोश करती जुल्फें
बढा रही हैं मेरी
शामों की उल्फतें।
भीनी धरती की खुशबू
लगता सेज बिछाई है तूने
यादों के इस मंजर में लगता है
तू व्याप्त मौसम की इस रवानी में ।
ऐसे में जब बिजली चमके
होश में लाती मुझको
हसीन यादों से जुदा करके
खंजर घोंपती मुझको।।