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जनवरी में ठंड गुलाबी
मैं ऊनी वस्त्र पहनूं
तिल तड़कूं, तेल उबटाऊं
बन सूवटा सा रहूं
मेरे मन की मैना बोले
पानी देख घबराऊं
सूरज की सुस्ती देख
मैं आलस गले‌ लगाऊं ।।
तू गुड़ मीठा मीठा
मैं तिल गर्मी लिए
तेरे और मेरे मिलने से
लड्डू मकर संक्रांति
के हो लिए।।

तू डोर चंचल चंचल
मैं पतंग रंगीले रंग का
तेरी आदत कभी ढील की
कभी कस-कस पेंच खींचने की
दूर जाकर समझ आया‌
मैं राही तेरे इशारों का।।

तू ही डग्गा , तू ही तिहली
मैं ढोल कसी चमड़ी वाला
तेरे हाथों के जादू से आवाज
निकलती दे ताला दे ताला।।

तू ही भांगड़ा तू‌ ही घूमर
तू ही जीवन सुर-संगीत लिए
तेरे शब्दों में ‌वह ऊर्जा
जैसे माघी धूप तरूणाई लिए।।
माघ की सर्दी में
कंबल लगे प्यारी
गर्म-गर्म  व्यंजनों
से होती है यारी
पर कमाने के नाम पर
घर छोड़ना भारी।

दिन में धूप गुनगुनी
रात में रजाई
अकेले को रात में
सपने बहुत डराई
जोड़ों को सुबह
देर से आए जगाई।

नहाने का पानी देख
बी पी ही बढ़ जाई
माघ रे माघ तू
खेल दुरुह रचाई
सपने वाले हैं मुश्किल में
हकीकत सोते रह जाई।।
कुछ सर्दी का कहर
कुछ मुश्किल पहर
मिले तो‌ मुर्झा जाते हैं
सदाबहार से शजर।।
ख़्वाबों के पंख होते हैं
उन्हें कोई पकड़ नहीं पाता
तेरी आंखें समुद्र हैं
मैं बाहर नहीं आ पाता
दोष ना ख़्वाबों का ना तेरा
इस जमीन पर रह कर
मैं सच्चाई समझ नहीं पाता।।
मैं लिखता शायरी
जिससे भरती डायरी
तेरे शब्द नशे की पुड़ियां
जिससे दबती मेरी नाड़ियां
नया साल है रखना ख्याल
कहीं ना बदले मेरी चाल
गर बदल जाये मेरी चाल
फिर तू लिज्यो मुझे संभाल
मेरी जुबां पर है तेरा आलाप
आंखों देखें तुझसे मिलाप।।
तुम एक किताब हो
जिसके पृष्ठ हैं बेसुमार
पढ़ते-पढ़ते मैं हुआ
अब चंचल से लगनवार
ना गीता ना बाइबल तू
फिर भी दोहराने के काबिल तू
दोहरा - दोहरा के मैं हुआ पागल
कर तेरे एक श्लोक में शामिल तू
दुनिया रूपी युद्ध भूमि में
तू ही एक ढाल है
तेरे भावों से भरा हुआ
मेरा यह कपाल है
क्रिसमस की तरह प्रेम
की तू अद्भुत मिसाल है
तेरी लगन में डूबा रहना
लगता है जश्न का माहौल है।।
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