होली तेरे स्वांग और लक्षण बड़े ग़ज़ब निराले हैं
बच्चे से बूड्ढे तक आज तमाशबीन बनने वाले हैं।
मर्द पहन लिबास जनाना
बांधे पग में घुंघरू हैं
मेहरी बन कर गली-गली में
शोर मचाते गबरू हैं
घर-घर फिर फाग सुनाते,डफ पर नाचने वाले हैं।
भर पिचकारी जब कोई छैला
आंगन की तरह झांके है
नई नवेली नार कई हवेली
के किवाड़ ढांके है
देख नजारा ये निराला, बूड्ढे आग में घी डालने वाले हैं।
घर का आंगन बने रंग बावड़ी
इसमें कई तैरने वाले हैं
इस नजारे का लुत्फ उठाने
कई बूड्ढे नज़रें बचा के ताड़ने वाले हैं
घर का मालिक- मालकिन ही, आज छूट देने वाले हैं।
भांग घोट कर पीने वाले
आकाश में उड़ने वाले हैं
मद का प्याला पीने वाले
गली में लोटने वाले हैं
सूचना पाकर घरवाले उठाकर लाने वाले हैं।
पुराने कपड़े ढूंढकर पहनने वाले
नये कपड़े पहनने वालों को ढूंढने वाले हैं
साफ सुथरी सूरत वालों को
लंगूर बनाने वाले हैं
खाने की किसी को फ़िक्र नहीं, सब रंग लगाने वाले हैं।
बच्चे से बूड्ढे तक आज तमाशबीन बनने वाले हैं ।।