सुबह तीन किलोमीटर दौड़ लगाई कृष्ण जन्माष्टमी प्रभु का ध्यान धराई आपकी कृपा से हलवा बनाई पहले आप के भोग लगाई फिर मेरे पेट की हुई भराई श्रम पहले फिर चाहे जो खाई यही आदर्श मेरे समझ में आई।।
यह तीज ना होती तो तीजणियां ना सजती तीजणियां ना सजती तो सावन में बहार तो होती परन्तु रंग व उमंग ना होती तीज में रंग तीजणियां हैं भरती दोनों मिलकर श्रृंगार उत्सव रचती।।
भूल गया मैं अपने आप को दुनिया की कसौटी पर खरा उतरने की कोशिश करते-करते ये दोस्त ही हैं जो बात-बात पर मेरी लंगोटी हैं खींचते और मेरी स्मृतियों की चोटी पकड़ते-पकड़ते मुझ तक अब भी हैं पहुंचते।।
जी करता है आंसूओं का सैलाब छुपाने को मगर बारिशों को कद्र कहां मेरे जज़्बातों की गर नहला देती मुझको ये अपनी मुसलाधार में मेरे अश्कों को भी मिल जाती मंजिल मुरादों की।।