उतार आए हैं सिर से
सारे ही बोझ
बैठे हैं सीमा पर चाहे
पुलिस आये या फौज।
कभी मौसम ने लूटा
कभी महामारी
हम सहते रहे
सारी दुश्वारी
दु:खों की कतार
हमने देखी है रोज।
अस्तित्व कुछ होता है
यह हमें ना मालूम
सभी हमें छलते हैं
हमें पहचान की ना तालीम
धरती से ही जुड़े हैं
बस यही एक मौज।
हमें किसी से अपेक्षा नहीं
फिर भी यह कैसी जबरदस्ती
कृषि सुधार का टोकरा
लेकर आ गया राज रूपी हस्ति
सांसे हो गई महंगी गर्दन है सस्ती
अब तो भूल चुके हैं
करना अपनी ही खोज।
Farmers agitation in India.