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Bhakti Dec 2017
सवाल

मैं जानता हूँ,अजीब एक गुनाह कर रहा हुँ।
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

धरती पड़ी जो हाथ असुर के
तुम ले अवतार आये थे
जब रक्षा की धरती माँ की
तब सब पुत्र धन्य हो पाए थे

आज माँ अपने की पुत्रों के दिलों का भार है
कलयुग में शर्मिंदा है आँचल,
ममता भी तार तार है।
बस बता दो भगवान हर घर मैं क्या जा पाओगे
अपनी ही संतान से ममता को कैसे बचाओगे .

जानता हुँ ,पूछ ये सब को हैरान कर रहा हुँ ,
ईश्वर मेरे , मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हुँ ।

चिरहरण पांचाली का भाई बन बचाया था
दे जवाब उस घृणा कार्य का ,
तूने पापियों का सर झुकाया था ।

पर आज हर मन में दुःशाशन बसता है,
दामन छलनी कर नारी का,
अत्याचारी मंद मंद हँसता है ।
हर दिन गूंजती चीख़ों को क्या मुस्कान में बदल पाओगे ,
हर चौखट पर लुटता दामन कैसे बचाओगे ।

जानता हूँ ,है प्रभु मैं पाप कर रहा हूं ,
ईश्वर मेरे मैं तुझसे कुछ सवाल कर रहा हूँ ।।

जब राजनीति,प्रशासन एवम न्याय भी बिकाऊ हो
तो गरीबों के आत्मदाह को , क्या मान दे पाओगे
डूबती है इंसानियत , डूबने से कैसे बचाओगे

जानता हूँ विश्वास पे घात कर रहा हूँ मैं
पर भगवान मेरे , ये ही चंन्द सवाल कर रहा हूँ मैं

— The End —