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Jun 2018
आसमान में छितराये वो बादल
पेड़ो के झुरमुट से आती वो आवाजें
चीं-चीं ,काँ-काँ ,टयूँ-टयूँ, पिहू-पिहू
इन सब को शांति से सुनती वो लतायें
हवा के झोखे से हिलती वो पत्तियाँ
सोते इंसानों को जगाती वो बोलियाँ
इस मधुर-संगीत को कैद करते वो संगीतकार
नाकामयाब से ढूंढ रहे अपने साज
पर पकड़ न पाये वो ताल।

आँगन से उठता वो धुआँ
खुशबू बिखेरता वो आशियाँ
जहाँ हर चेहरा खिलता देख वो रोटियाँ
जो मिटाती तन-मन की भूख।

ये ही है वो गुलिस्तां
जिसे ढूंढ रहा पागल-सा वो इंसान
जिसे खरीद नहीं सकता कुबेर का खजाना
भौर की वो किरण
ओस की वो बूंदें
सकूँ भरी वो सांस
ये ही है वो एक सुबह।
Avanish maurya
Written by
Avanish maurya  17/M/Delhi
(17/M/Delhi)   
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