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dead poet Nov 24
आंसुओं से नमकीन तकिये पर वो ख्यालों का समंदर साध रहा है
निराशा की लहरों के बीच वो अपनी कमर कसकर बाँध रहा है
व्याकुलता पर नियंत्रण कर, वो धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है
गौर से देखो, वो कुछ कर रहा है!

बे-बात ही न जाने क्यों ही दुनिया से वो लड़ रहा है -
शायद अपनी बात रखने की ही तैयारी कर रहा है
महानों के इतिहास में झांक कर वो
अपने भविष्य के पन्ने भर रहा है!
उसे कुछ देर अकेला छोड़ दो,
वो कुछ कर रहा है!

कुछ सोच रहा है, कुछ समझ रहा है!
बंद होठों के पीछे उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से गरज रहा है।
भले ही आज अपने ही लिखे पर हस्ताक्षर करने को डर रहा है -
पर उसे कमज़ोर मत समझना,
वो ज़रूर कुछ कर रहा है!

परिश्रम का फल सदा से अमर रहा है,
पर करने वालों पर सदा से अमंगल का क़हर रहा है।
इसके बावजूद, वो कोयले सा तपकर हीरे सा निखर रहा है -
गौर से देखो, वो कुछ कर रहा है!

— The End —