Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
 
वह अपने आप को छुपाती है
सारी बाते लबो से दबाती है
कुछ कहना है तो कह दो
दो दिन की जींदगी और बाकी है।

मैं तो चाहता हूँ तुम्हें, सब को पता है
अपना हाले दिन तू अब तो बता दे
कितना अब इंतजार करू मैं
अपने लबो के पर्दे को अब तो हटा दे।

मैं बैठा रह गया तेरे इंतजार में
अब तो खुद को तू मुझसे मिला दे
अपना हाले दिल मुझे तू अब तो सुना दे
मुझे जीने का अब तो कोई रास्ता दिखा दे।

वह अपने आप को छुपाती है
पर नजरे उनकी सब बताती है
मैं जानता हूँ सब तेरी बाते
मुझे भी तो अब अपना बनाले ।

अभी भी इंतजार है उनका
कभी अपना चेहरा तो दिखा दे
खुल के तू जरा सा मुस्कुरा दे
जज़बातो को अपने लबो से उतार दे।

संदीप कुमार सिंह
For sweet sleep
For true dream
हमें डर लगता है
इसी लिए तो चुप रहते है
वरना कलाम तो हमारी भी
खूब चलती है।

हमे डर लगता है
सामाजिक मुद्दो पर लिखने मे
अपने विचार रखने में
अपने आप से लड़ने में।

देख लेते है हम
अपनी आंखे बंद करके
लोगो को रोते, चिल्लाते
साँसे थाम लेते है, कलम बंद कर लेते है ।

हमें डर लगता है
इसी लिए तो आंखे मूँद लेते है
वरना इन आंखो से भी
चिंगारियाँ खूब निकलती है।

कलम रोती है मेरी, कहती है
कभी तो मुझे छोड़ दो
आजादी से लिखने दो, पर
इसे कैसे समझाऊँ
हाथ स्व्यम रुक जाती है ।

हमें डर लगता है
इसी लिए तो चुप रहते है
वरना कलाम तो हमारी भी
खूब चलती है।

>>> संदीप कुमार सिंह <<<
kaisi - kaisi din dikhati hai ye jindagi
kabhi hansati hai kabhi rulati hai ye jindagi
jise chaha apni anko ke palko pe sajake
oh kisi orke sath hai, kya khel hai ye jindagi.???
.
sandeep kr singh
I saw everything
In front of eyes looked deeply involved
The two friends looked at fester
Love saw two fighting
The break saw two flowers .

If neither ,

Make someone saw
Do not believe anyone saw
Love did not laugh
Friends call seen
Saw two flowers blooming .


Sandeep Kumar Singh
आंखो के सामने उलझते देखा
दो दोस्त को बिगड़ते देखा
दो प्यार को लड़ते देखा
दो फूल को टूटते देखा ।

न देखा तो,

किसी को बनाते न देखा
किसी को मानते न देखा
प्यार को हँसाते न देखा
दोस्त को बुलाते न देखा
दो फूल को खिलते न देखा।

-संदीप कुमार सिंह
भुला देना मेरे हृदय से
तुम्हारे हर एक यादों को
उन फरियादों को, मुलाकातों को
उन हर एक नजारो को
खुद को, मुझ को, हम सब को।

भुला देना तुम हमारी
उन पहली मुलाकातों, उन पालो को
जो बिताएँ थे साथ-साथ
भुला देना तुम
उस साथ को, मुलाक़ातों को
दो पल को, और हम को।

तुम तो जीलोगी
किसी और की यादों में
यादों में मेरे सताओगी मुझाको
तन्हा रुलाओगी  
हर पल, हर दिन
यादों को लेकर तड़पाओगी मुझको।

कुछ दिन तो लगेंगे मुझे
तुम्हें  भूल जाने को
तुम्हारी उन यादों को, हर मुलाकातों को
मेरे दिल से मिटाने को।

तबतक तड़पूंगा
जी भर के रोलूंगा  s
तुम्हें याद करूंगा
तुम्हारे लौट आने का
खुदा से भी फरियाद करूंगा। पर....

भुला देना तुम अपने दिलो से
मेरी तड़प की आवाज सुनने की चाहत को
मेरी बेचैनी,
तुम्हें पाने की चाहत और
मेरी आंखो में आँसू देखने की
अपनी तमन्ना को।

भुला देना मेरे हृदय से
तुम्हारे हर एक यादों को
उन फरियादों को, मुलाकातों को
उन हर एक नजारो को
खुद को, मुझ को, हम सब को।
भुला देना तुम, भुला देना।

     -संदीप कुमार सिंह
Next page