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Mar 2016
हमें डर लगता है
इसी लिए तो चुप रहते है
वरना कलाम तो हमारी भी
खूब चलती है।

हमे डर लगता है
सामाजिक मुद्दो पर लिखने मे
अपने विचार रखने में
अपने आप से लड़ने में।

देख लेते है हम
अपनी आंखे बंद करके
लोगो को रोते, चिल्लाते
साँसे थाम लेते है, कलम बंद कर लेते है ।

हमें डर लगता है
इसी लिए तो आंखे मूँद लेते है
वरना इन आंखो से भी
चिंगारियाँ खूब निकलती है।

कलम रोती है मेरी, कहती है
कभी तो मुझे छोड़ दो
आजादी से लिखने दो, पर
इसे कैसे समझाऊँ
हाथ स्व्यम रुक जाती है ।

हमें डर लगता है
इसी लिए तो चुप रहते है
वरना कलाम तो हमारी भी
खूब चलती है।

>>> संदीप कुमार सिंह <<<
Sandeep kumar singh
Written by
Sandeep kumar singh  Nagaon, Assam
(Nagaon, Assam)   
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