मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है....२
दवा के नाम पर आज लबों से लगाई गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है|
के जाती है जब अंदर तो नस नस बोलती है
राज़ सारे दिल के अपने आप खोलती है
इंसान चाहे जितना भी सम्भलना चाहे इसके आगोश में डूब ही जाता है..२
और किनारे पर वो जब भी आता है बस शराबी कहलाता है, बस शराबी कहलाता है|
आज भी ये शराब न जाने कौन से ठेके से मंगवाई गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है|(2)
आज कांच के ग्लास में शराब है,आज कांच के ग्लास में शराब है
बर्फ डालकर इसका मज़ा और भी दुगना हो जाएगा......
जाएगी जब अंदर तो हर गम, दुःख, परेशानी को इक सकूं सा मिल जाएगा, इक सकूँ सा मिल जाएगा...
कि नशे की ये मल्लिका आज मेरे भी गले से उतारी गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है|(2)
कि ख़ुशी हो या गम बस टेबल पर शराब कि बोतल सजा दी जाती है|
हम और हमारे अपनों के बीच ये इक दीवार कि तरह खड़ी हो जाती है|
के ख़ुशी अपनों के साथ मनाई जाती है शराब के साथ नहीं
और गम भी अपनों के साथ बाँटा जाता है गैरों के साथ नहीं
पहले हम इसे पीते हैं, फिर ये हमें पी जाती है
शराब कि ये लत आखिर मौत का पैगाम ही लेकर आती है|
मुझसे जो आज भूल हुई वो औरों के साथ बार बार दोहराई जाती है
और पीता न हो कोई उसे भी बार बार पिलाई जाती है
मैं भी इसी का शिकार हुआ हूँ, ये बात आप सब से न छिपाई गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है
के मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है, मुझे पिलाई गई है||
शराब हर गम दुख परेशानी को दूर करने का सहारा है पर ये शराब ही अपनों को अपनों से दूर कर देती है है|