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Puneet Kumar May 2018
तोड़ा है दिल मेरा भी किसी ने.....तोड़ा है दिल मेरा भी किसी ने
उसे सबसे छिपकर जिए जा रहा हूँ|
न याद आए उसकी मुझको तो कभी भी......न याद आए उसकी मुझको तो कभी भी
इन्ही आँसुओं से ज़ख्मों को सिए जा रहा हूँ...................

दिया है जो दर्द वो कभी न मिटने पाएगा........ दिया है जो दर्द वो कभी न मिटने पाएगा
तुझे भूलकर भी ये दिल भुला नहीं पाएगा
कैद कर रक्खा है तुझे इस दिल में मैंने आज भी... कैद कर रक्खा है तुझे इस दिल में मैंने आज भी
तेरी जगह को कल भी कोई भर न पाएगा......

इस दर्द में मैं ख़ुशी ढूंढकर जिए जा रहा हूँ……. इस दर्द में मैं ख़ुशी ढूंढकर जिए जा रहा हूँ
हर लम्हा खून के घूँट पिए जा रहा हूँ.
न याद आए उसकी मुझको तो कभी भी…… न याद आए उसकी मुझको तो कभी भी  
इन्ही आँसुओं से जख्मों को सीए जा रहा हूँ.

क्या बीत रही है मेरे दिल पर…….. क्या बीत रही है मेरे दिल पर
उसे इस बात की खबर ही नहीं
कि इस वीरान दुनिया में मैं…… कि इस वीरान दुनिया में मैं
जी कर भी मरे जा रहा हूँ…. मरे जा रहा हूँ

आँखें तो हर दम नम हे रहती हैं मेरी… आँखें तो हर दम नम हे रहती हैं मेरी
दिल के इक कोने से चीख भी उठती है..
कि किस गुनाह की सज़ा दी है तुमने मुझे…. कि किस गुनाह की सज़ा दी है तुमने मुझे
हर जगह बस तुम हे तुम नज़र आते हो
ऐसी सज़ा क्यों दी है तुमने मुझे…….

श्याही कि जगह खून से दर्द बयाँ किये जा रहा हूँ… श्याही कि जगह खून से दर्द बयाँ किये जा रहा हूँ
न याद आए उसकी मुझको तो कभी भी…. न याद आए उसकी मुझको तो कभी भी
इन्ही आँसुओं से जख्मों को सीए जा रहा हूँ…. सीए जा रहा हूँ…. सीए जा रहा हूँ
Puneet Kumar Apr 2018
ऐतबार कर लिया इंतज़ार कर लिया
आंसुओं से भी हमने कुछ उधार कर लिया

दिल तो तूने लिया दर्द मुझको दिया, दिल तो तूने लिया दर्द मुझको दिया
दर्देदिल का भी तूने कारोबार कर लिया
ऐतबार कर लिया इंतज़ार कर लिया
आंसुओं से भी हमने कुछ उधार कर लिया

याद करता हूँ मैं आँहें भरता हूँ मैं,  याद करता हूँ मैं आँहें भरता हूँ मैं
सारे खाबों को तूने तार तार कर दिया
ऐतबार कर लिया इंतज़ार कर लिया
आंसुओं से भी हमने कुछ उधार कर लिया

सब सहते हैं हम दूर रहते हैं हम,  सब सहते हैं हम दूर रहते हैं हम
मेरे ज़ख्मों से तो तूने श्रृंगार कर लिया
ऐतबार कर लिया इंतज़ार कर लिया
आंसुओं से भी हमने कुछ उधार कर लिया

मौत आती नहीं जान जाती नहीं,  मौत आती नहीं जान जाती नहीं
ज़िन्दगी को ही हमने कर्ज़दार कर लिया
ऐतबार कर लिया इंतज़ार कर लिया
आंसुओं से भी हमने कुछ उधार कर लिया
ये एक छोटी सी ग़ज़ल है जिसमें इंतज़ार कि हद जब पार हो जाए तो कैसा लगता है|
Puneet Kumar Apr 2018
मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है....२
दवा के नाम पर आज लबों से लगाई गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है|

के जाती है जब अंदर तो नस नस बोलती है
राज़ सारे दिल के अपने आप खोलती है
इंसान चाहे जितना भी सम्भलना चाहे इसके आगोश में डूब ही जाता है..२
और किनारे पर वो जब भी आता है बस शराबी कहलाता है, बस शराबी कहलाता है|
आज भी ये शराब न जाने कौन से ठेके से मंगवाई गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है|(2)

आज कांच के ग्लास में शराब है,आज कांच के ग्लास में शराब है
बर्फ डालकर इसका मज़ा और भी दुगना हो जाएगा......
जाएगी जब अंदर तो हर गम, दुःख, परेशानी को इक सकूं सा मिल जाएगा, इक सकूँ सा मिल जाएगा...
कि नशे की ये मल्लिका आज मेरे भी गले से उतारी गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है|(2)

कि ख़ुशी हो या गम बस टेबल पर शराब कि बोतल सजा दी जाती है|
हम और हमारे अपनों के बीच ये इक दीवार कि तरह खड़ी हो जाती है|
के ख़ुशी अपनों के साथ मनाई जाती है शराब के साथ नहीं
और गम भी अपनों के साथ बाँटा जाता है गैरों के साथ नहीं
पहले हम इसे पीते हैं, फिर ये हमें पी जाती है
शराब कि ये लत आखिर मौत का पैगाम ही लेकर आती है|
मुझसे जो आज भूल हुई वो औरों के साथ बार बार दोहराई जाती है
और पीता न हो कोई उसे भी बार बार पिलाई जाती है

मैं भी इसी का शिकार हुआ हूँ, ये बात आप सब से न छिपाई गई है
पर मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है
के मैं पीता नहीं शराब मुझे पिलाई गई है, मुझे पिलाई गई है||
शराब हर गम दुख परेशानी को दूर करने का सहारा है पर ये शराब ही अपनों को अपनों से दूर कर देती है है|
Apr 2018 · 257
Cigarette
Puneet Kumar Apr 2018
सिगरेट पीने की तलब उठी है
फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ
देख न ले अपना कोई मुझको
कि मैं छिप छिपकर सुट्टा लगा रहा हूँ
सिगरेट पीने की तलब उठी है
फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ|

सिगरेट निकाली तिल्ली जला ली, सिगरेट निकाली तिल्ली जला ली
जली तीली से सिगरेट जला ली|
पहला कश मारते ही दिल को चैन मिल गया (2)
धुऐं का वह समंदर जब मेरे खून से मिल गया
पहले कश के उस धुऐं को धीमे धीमे छोड़े जा रहा हूँ
कि सिगरेट पीने की तलब उठी है
फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ

पहला कश ख़त्म हुआ अब दूसरे कि बारी है
दूसरे कश में मेहबूबा को भुलाने कि तैयारी है
दूसरा कश जब मारा मैंने दिल पर सीधी चोट हुई
नम हुई आँखें थम गई सांसें न जाने कौन सी भूल हुई
इस सिगरेट से गम को मैं तो धुऐं में उड़ाए जा रहा हूँ
कि सिगरेट पीने की तलब उठी है
फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ|


दूसरे के बाद तीसरा मारकर ये ब्लैक & वाइट दुनिया पूरी रंगीन हुई
दुःख भी दूर हुआ गम भी मिट गया, गम भी दूर हुआ दुःख भी मिट गया  
एसी सिगरेट बाबा कि मुझपर मैर हुई
कि पूरी दुनिया से लड़ लूंगा इतनी ताकत मुझमें आ गई है
कोई भी साला अब सामने आ जाए पूरी कि पूरी सिगरेट मुझमें समा गई है
होश में रहकर भी मदहोश हुए जा रहा हूँ
सिगरेट पीने कि तलब उठी है
फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ

पता है ये मेरे लिए ठीक नहीं है (2)
गम में अपने ही फेफड़े जलाए जा रहा हूँ और कैंसर को गले लगाए जा रहा हूँ
दुःख और परेशानी तो मात्र एक बहाना है
ज़िन्दगी को ताक पर रख मैं कश लगाए जा रहा हूँ
कि सिगरेट पीने की तलब उठी है
फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ, फिर एक सिगरेट जला रहा हूँ
सिगरेट पीने के अलग अलग बहाने हैं पर उसका अंजाम एक ही है|

— The End —