भारत की आत्मा गांवों में बसती है यहां झूठ महंगी और सच्चाई सस्ती है।
खाने में अवयव कम है पर जितने भी हैं उन में दम है दिखावा कम है बातों में वजन है तभी युवा पीढ़ी आज भी बुजुर्गों के आगे झुकती है।
घरों में बातें कम होती है काम ज्यादा होता है आने - जाने वाले का आदर होता है भूखे को खाना प्यासे को पानी मिलता है चौपालों पर आज भी रौनक रहती है।
बात की पकड़ अभी बची हुई है युवाओं का भरोसा बुजुर्गों के अनुभव पर कायम है युवाओं में फिक्र कम कुछ कर गुजरने का दम है तभी तो सामूहिक परिवार गांव की बपौती है।
त्योहार मात्र औपचारिकता नहीं बहन - बेटी के घर आने का अवसर है मिल बैठकर खाने और हंसी खेल की चौसर है। रिश्तों पर विश्वास की एक कसौटी है।।
होली हो तो रंग - गुलाल से ज्यादा नाच - गान पर विश्वास है नए-नए स्वांग देखकर हृदय में भरता उल्लास है पीते हैं मद तो भी आंखों में कान्हा की रास बसती है।