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Jan 2021
सच्चा दोस्त कहां मिलता है,
मैं अब तक यह न जान पाया
       कल्पना में मिलता हो तो
       चलो आज कल्पना से ही पूछें।।

खेलने का ना कभी शौक था
घूमने का भी कहां अवसर था
बस पढ़ने का एक जुनून था
इसलिए किताबें ही दोस्त थीं।

       किताबों से बड़ा कोई दोस्त नहीं है
     परीकथाओं में रचा हो तो परियों से पूछें।।

स्वार्थ की दुनियां से अछूते रहे
जीवन साधारण सा बस जीते रहे
हर रिश्ते को पैबंद लगाते रहे
खुद्दारी से हर काम करते रहे।

       आस्था को अपना आईना बनाया
      आईने में खोट हो तो आईने से पूछें।।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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   Jayantee Khare and Khoisan
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