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Sep 2020
दिल्ली हो या हाथरस
दो हजार बारह हो
या फिर दो हजार बीस
बेटियों के लिए मुफीद नहीं
अब यह अपना देश।

तोड़ना पीड़िता की
रीढ की हड्डी का हाथरस में
भरता है आक्रोश नस नस में
और साबित करता है
रीढ विहीन हो‌‌ गया है
अब यह अपना देश ।

कानून चाहे कुछ भी करे
संस्कारों की भी है दरकार
संस्कारों की ही कमी
धरती है दनुज का भेष
'लानत है' का मतलब
अब कोई समझाता नहीं
माता, पिता‌‌ और गुरु
वाला‌ अब‌ डर रहा नहीं
इसलिए‌ ना शर्म बची है शेष
बेटियों के लिए मुफीद नहीं
अब यह अपना‌ देश
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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