अभी हवाओं ने बदला है रुख बाहर है खामोशी ,दिल में कोहराम लाखों पैदल सड़कों पर चल ढूंढ रहे हैं अपना मुकाम गूंगी सी सुबह, गूंगी सी शाम ना कहीं झालर ,ना अजान एक तरफ अपनों की यादें तो दूसरी ओर बाहर जाने के बुरे अंजाम बन गये कातिल मानव के उसकी ही तरक्की के काम।