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May 2020
अभी हवाओं ने बदला है रुख
बाहर है खामोशी ,दिल में कोहराम
लाखों पैदल सड़कों पर चल
ढूंढ रहे हैं अपना मुकाम
गूंगी सी सुबह, गूंगी सी शाम
ना कहीं झालर ,ना अजान
एक तरफ अपनों की यादें तो
दूसरी ओर बाहर जाने के बुरे अंजाम
बन गये कातिल मानव के
उसकी ही तरक्की के काम।
Mohan Sardarshahari
Written by
Mohan Sardarshahari  56/M/India
(56/M/India)   
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