ज्येष्ठ तप रहा जी भर जीना हो गया दुष्कर सूखकर त्वचा हो गई खुश्क आंखों में बचा ना कोई अश्क मरुधर की गर्मी में ना उमस का नाम हवा चले तो लू बन के लेवे सबकी जान सिर ओढे कोई गमछा कोई बैठे टोपी तान नींबू पानी, बेल शरबत डाले शरीर में कुछ जान कूलर एसी निष्प्रभावी हुए खाना-पीना,नींद छू मंतर हुए जब आंधी का भूचाल आए तोड़ दे अधमरे पेड़ सारे पशु पक्षी सिसकें चाहे बकरी हो या भेड़ सूर्य के आर्कोश से हैं सभी सन्न धरती कहे इन्द्र से अब देरी करो ना राजन।