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Jun 2019
ज्येष्ठ तप रहा जी भर
जीना हो गया दुष्कर
सूखकर त्वचा हो गई खुश्क
आंखों में बचा‌ ना कोई अश्क
मरुधर की गर्मी में
ना उमस का नाम
हवा चले तो लू बन के
लेवे सबकी जान
सिर ओढे कोई गमछा
कोई बैठे टोपी तान
नींबू पानी, बेल शरबत
डाले शरीर में कुछ जान
कूलर एसी निष्प्रभावी हुए
खाना-पीना‌,नींद छू मंतर हुए
जब आंधी का‌ भूचाल आए
तोड़ दे अधमरे पेड़
सारे पशु पक्षी सिसकें
चाहे बकरी हो या भेड़
सूर्य के आर्कोश से
हैं सभी सन्न
धरती कहे इन्द्र से
अब देरी करो ना राजन।
Mohan Sardarshahari
Written by
Mohan Sardarshahari  56/M/India
(56/M/India)   
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