अजनबी था यहां चला था यूं ही खाली शौक पूरा करने को देखते ही देखते लग गई लत कविताएं लिखने को लिख डाली कुछ प्यार पर कुछ मौसम के मिजाज पर कुछ खानपान की रंगत पर कुछ फैशन की जमीन पर कुछ उठने सोने की आदत पर कुछ लिखी जीवन संघर्ष पर कुछ लिखी स्वर्णिम सपनों पर कई अपने परायों पर तो कई महिला मुद्दों पर तो कुछ बेहूदी करतूतों पर मिला अपार स्नेह यहां पर जब देखता हूं पीछे मुड़ कर कुछ लोगों ने इतना सराहा जितना शायद मैं काबिल ना रहा हिंदी में शाइना भट्टी, श्रुति दाधीच कनिष्का और जयंती खरे यह हमेशा रहते हैं बड़े ही उत्साह से भरे अंग्रेजी में सीजे, फौन और पेरी यह भी नहीं है किसी से परे धन्यवाद आप सभी का मेरे साथ होने का और उत्साह भरने का एचपी को मेरा सलाम शतक पूरा करने का।