उस जांच को क्या नाम दूं जो देख झूठ चकराए जांच के घेरे में कई हैं क्या अपने क्या पराये समझो जांच उसी के बेबस जो देख उसे मुस्काये फिर भी जांच ऐसे को सौंपी जाए जो भेद किसी का खोल ना पाए सच की आग अब मंद पड़ी है झूठ फफोला बनाए कैसे अब वह नाव चले जब मांझी खुद ही हिचकोले खाये।