आम लोगों की भीड़ में कुछ खास है तू नाहक खुद को समझाने की कोशिश ना कर। तेरी अच्छाइयों की फेहरिस्त इतनी लंबी है, इनके समझने की ताकत उतनी गहरी नहीं।
तुझ में ऐब निकालना इनकी फितरत नहीं, इनके जीने की जरूरत है, तुझ से तुलना करके तुझ जैसा बन पाना मुमकिन नहीं।
तुझे मिटा कर तुझ को इन जैसा बनाना इनकी कोशिश है, खुद को तुझ जैसा बनना नामुमकिन।
तू आम लोगों में कुछ खास है। खुदा की बेहतरीन कारीगरी का नमूना है तू,
इतिहास गवाह है खास लोगों के पर्चे बड़ी शिद्दत से निकालता है खुदा। तू बस उसी खुदा की बंदगी करते चल। एक वक़्त आएगा जब उसके दरबार की तारीख निकलेगी तब, अदालत भी उसकी होगी, दलील भी। गवाही भी उसकी होगी, पैरवी भी। इलज़ाम भी उसके होंगे, सज़ा भी।
आम लोगों की भीड़ में कुछ खास है तू, ज़ाहिर है ज़िन्दगी में मुश्किल भी होगी मशक्कत भी, ज़िन्दगी इतनी आसान तो कभी ना होगी, पर उस अदालत में बेशख़ फतेह तेरी ही होगी।