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Jan 2019
पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।
ना सपनों का अंबार होता है
ना जवानी का ताव होता है
बस बुझी - बुझी आंखें होती हैं
लरजते होंठ
आने वाली कमजोरी का भान होता है
ऐसे में कोई कैसे साथ हो सकता है
फिर भी यूं ही हालात बयां करते - करते
दिल ख्वाबों का बगीचा देखता है
सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।

जुड़ाव का समय गुजर चुका है
अब तो दांत,बाल,नाखून झड़ रहे हैं
ना चाहते हुए भी कुछ आदतें बिगड़ रही हैं
शरीर रूपी भूमि में रसायन भरने की तैयारी है
ऐसे में कहां खेती - खलिहानी की बारी है
दोस्त भी अब बाग नहीं सैर की बात करते हैं
ऐसे में कौन फूलों वाली पास आती है
सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।

बस इल्तजा इतनी है सैर में
मिल जाए कोई अमृता
तो हो जाए दो - चार कविता
और सफर बन जाए आसान
अंतर्मन में मचे ना घमासान
बनाऊं चाय उसके लिए
रोटी का कहां है अब गुमान
इस रोजी-रोटी के खेल में
कभी - कभी ख्वाब हो जाते हैं जवां
पर सच यही है पतझड़ में फूल खिलते नहीं
प्रौढ़ावस्था में दिल दोबारा मिलते नहीं।।
Mohan Jaipuri
Written by
Mohan Jaipuri  60/M/India
(60/M/India)   
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     Ruhani, Jashn and Shruti Dadhich
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