कितना प्यारा, कितना न्यारा देहाती जीवन था हमारा शीतल जल था घड़े वाला दूध पीते थे कढावणी का रोटी सिकती चूल्हे पर रखी जाती थी ठाटलिए में सुखाई जाती थी छींके में खाई जाती थी चाव से दही प्याज के साथ से तब दमकते चेहरे थे ना कोई गम के घेरे थे ऐसा जीवन था निराला जैसे खुशियों का प्याला कितना प्यारा, कितना न्यारा देहाती जीवन था हमारा ।
रात रोशन दीपक करते जिसमें खुशबू थी तिल तेल की चूल्हा जलता लकड़ी ,छाणो से जो सजते थे छाणेड़ी में चूल्हे बैठ चर्चा करते सब रिश्ते आनंदित होते क्रोध से अनभिज्ञ थे सिर्फ चौपालों के मेले थे चौपड़ पासा, कुश्ती ,दड़ा और माल्ला खेल निराले थे कितना प्यारा, कितना न्यारा देहाती जीवन था हमारा ।
खीर खाकर जुकाम उतारते पाव घी खिचड़ी में खाते पीपल छाल फोड़ों पर लगाते नीम पानी से जख्म धोते तब बहुत जल्द स्वस्थ होते ऊंटों पर बारात जाती तब चर्चा देर तक होती बुजुर्ग तब माला जपते हंसते-हंसते देह छोड़ते यह करिश्मा जिसने देखा उसको जीवन सार समझ में आया ऐसा जीवन निराला था जैसे खुशियों का प्याला था कितना प्यारा ,कितना न्यारा देहाती जीवन था हमारा ।।