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Sefali Rani
Poems
Oct 2018
बची हुई आस
हार तो मुझे ना थी मंजूर
पर हार तो गई थी मैं
उस हार की वजह ना थी कुछ और
कमी थी मेरे ही इरादों में ।।
अपनी गलती को झुटलाना नहीं चाहती
और वो गलती दोबारा दोहराना भी नहीं चाहती
इसलिए तो दूरी बना रही हूँ मैं उन सबसे
ताकि खो ना दूँ मैं वो बची हुई आस ।।
समझ में आती है मुझे बस एक ही बात
है बची मेरे पास बस एक ही आस
अगर खो दिया मैंने वो बची हुई आस
तो कभी खुद को जोड़ ना पाऊँगी बस इतनी सी है बात ।।
बहुत सुन चुकी हूँ मैं सबकी बात
अब बस शांत ही रहना है मुझे
किसी को भी ना देना है मुझे कोई भी जवाब
खुद को खुद में ही बस जगाना है विश्वास ।।
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Written by
Sefali Rani
20/F/Ranchi
(20/F/Ranchi)
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