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Deovrat Sharma
Poems
Sep 2018
आईना-ए-वक़्त
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धुंवाँ धुंवाँ सा समा है हर ओर धुंद फैली है।
फ़िजा में तल्ख़ी है..शब से हवा कसैली है।।
ऊँचे रसूख़वान हैं.. दख़ल रखते हैं हुक़ूमत में।
सुना है शहर में..कुछ नये लोगों ने..पनाह ली हैं।।
शक्ल इन्सानों की कैफ़ियत है दरिंदों जैसी।
उनके उजले है लिब़ास.. रूह मगर मैली है।।
लुट गया कारवाँ.. सब निगहबान गाफ़िल हैं।
अज़ब सा मंज़र है .. अनबूझ सी पहेली है।।
किसी मासूम की दबी दबी सी सिसकी हैं।
सहमा हुआ सा आल़म सुनसान सी हवेली है।।
किसकी नज़र लगी है आराईश-ए-गुलशन को।
जिधर भी देखिये अब सिर्फ झाडियां कंटीली हैं।।
धुंवाँ धुंवाँ सा समा है...हर ओर धुंद फैली है।
फ़िजा में तल्ख़ी है....शब से हवा कसैली है।।
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©deovrat 17.09.2018
रसूख़वान=resourceful
आराईश=Beauty
कैफ़ियत=nature
Written by
Deovrat Sharma
58/M/Noida, INDIA
(58/M/Noida, INDIA)
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