कई मर्तबा सोचा , लफ़्ज़ों से मुलाकात की बेइंतेहा गुरूर के पक्के है , जुबा तक नहीं आते फकत इन्तेजार में लम्हे गुजरना , शायद जायस पर दोबारा जस्बात , इश्क के इम्तेहान को नहीं जाते मुस्कुराती जिंदगी से कुछ मसला हैं मेरा शायद खूबसूरत लगती है , चुभती तन्हा राते