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Dec 2015
जमाने ने दिखाया है हमें हर वक़्त आईना
मगर गलती ये हमने की जो इसको देख पाए न
हमारी आंखों के आगे से ही सब यूं ही गुजरता गया
ये गलती थी हमारी ही जो इसको रोक पाए न।

बहुत देखे इन आंखों ने उन्हें इस राह को जाते
कभी हँसते, कभी रोते, कभी चलते, कभी गिरते
सोचा इस राह से मैं थाम लूँ उनकी कहानी को
मगर जो राह है अपनी,हम उन तक जा नहीं सकते।

कभी भूखी वह सोती है, कभी रोती ही रहती है
वह इतनी सख्त हो गई है कि आँसू भी न गिरती है
जमाने ने दिखाया है उन्हें यह राह पत्थर का
मगर वह सब समझती है किसी से कुछ न कहती है।

हमारा धर्म क्या है यह तो हम सब भूल बैठे हैं
अपने ही स्वार्थ के चलते हम इनसे दूर रहते हैं
कोई अगर चाहे तो सब कुछ जान सकता है
उन्हें इस राह पर गिरने से पहले थाम सकता है।

अगर चाहे तो हम उनकी जंजीरे खोल सकते हैं
अगर चाहे तो हम उनकी दीवारें तोड़ सकते हैं
अगर चाहे तो हम उनकी हकीकत तौल सकते हैं
अगर चाहे तो हम उनके ये आँसू पोंछ सकते हैं।

मगर यह कौन कहता है कि हम उनको बचाएँगे
यह तो हम भी नहीं कहते कि उनके पास जाएँगे
जमाने ने सिखाया है हमें बस दूर ही रहना
अगर हम पास जाएँगे तो हमें भी छोड़ जाएँगे।

तुम्हारी आंखों से गिरते आँसू को मैंने देखा है
तुम्हारी गोद में सोते एक जीवन मैंने देखा है
तुम्हारे भीतर जलती ममता को भी मैंने देखा है
तुम्हारे आँसू के मोती में एक माँ को मैंने देखा है।

-संदीप कुमार सिंह
Sandeep kumar singh
Written by
Sandeep kumar singh  Nagaon, Assam
(Nagaon, Assam)   
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