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Mohan Jaipuri Jan 14
मकर संक्रांति आई
तिल तड़क्या,दिन भड़क्या
पतंग उड़ाई, डफ ढूंढा
फागण के चाव में बिगड़े मुंडा ।
Mohan Jaipuri Jan 10
इस कदर तेरे दीद से नाता
और संदेश का फाका है कि
जब तेरे प्रोफाइल से गुजरे तो
बिन कुछ लिखे जा नहीं पाया ।
जीत हमारी इतनी चर्चित नहीं होती
अगर हार के किस्से यों आम ना होते।
गर बदजुबानी तुम्हारी सामने ना आती
मिलने पर शायद हम यों ना मुस्कुराते ।
पतझड़ यदि‌ कभी नहीं आती
भूल जाते हम भी किसी शाखा पर हैं रहते।।
अब लम्बी कविताओं का वक्त नहीं
ना ही बचे हैं लम्बे रिश्ते
शोसल मिडिया परोसता वासना के  किस्से
घरों में तड़प रहे मां - बाप से फरिश्ते
किताबें कोई छुता नहीं,डिजिटल बोर्ड टंगे दीवार
ज्ञान कोई लेता नहीं , डिग्रियां बिकती सस्ते
शारीरिक श्रम से विश्वास हटा,रोग मिले महंगे
मशीनों के सहारे ही अब कट रहे हैं रस्ते।।
झुमका देखूं रे जब - जब किसी
सुन्दरी के कान में
मुझको वो दिन याद आते हैं जब
छूटता था पसीना सोनी की दुकान में 😀।।
जो बातें तू कह नहीं पाती
वो तेरी आंखें कह जाती
होठों के शोलों से आती
गर्मी है सर्दी को चिढ़ाती।।🔥
एकजुटता तीस मार्च की
अनौपचारिकता इकतीस  की
बेटे की शादी की यादें हैं चोबीस की।
'तरार' पर बातें करना दिल छू गई युद्धवीर की
सास मेरी ठहरी‌ जो 'तरार' साधासर की।
जूठे हाथ भूलकर हाथ मिलाना झुकककर
संगीता की आत्मीयता यादें है चौबीस की।
पच्चीस पूरी ना कर‌ सकेगा वादा यह के पी का
भाभीजी से मुलाकात कराना बात रही दूर की।।
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