नोकरी, छोकरी और शायरी
दो समय तो ये हर बार निखार पाते।
इसमें कभी भी पारंगत नहीं हो सकते
हमेशा ये सुधार की गुंजाइश ही रखते।
लफ्ज़ यहां बहुत महत्व रखते
बिगड़े लफ्ज़ तो ये नहीं बख्शते।
रात दिन का फेर नहीं समझते
जब लगे तलब तभी जगा लेते।
व्यक्ति जब तक कुछ सोचता
तब तक तो ये मुंह बना लेते।
तीनों ही रत्न ये अद्भुत
एक दूसरे को पुष्ट करते।