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Mohan Jaipuri Jan 2024
A mother is the heaven on the earth
and a daughter is manifestation of it.
Mohan Jaipuri Jan 2024
बच्चे नटखट कार्य से
बुजुर्ग नटखट दिल से
बात दोनों एक ही है बस
बच्चों के बाल आने वाले
बुजुर्गो के जाने वाले।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
जय श्रीराम,भजलो यह नाम
जमाना है डिजिटल,सेव करलो नाम
इतना जतन से सेव करो कि अगर
हमारा शरीर रूपी हार्डवेयर खत्म भी हो जाये तो
बैक अप में यमराज को जय श्रीराम मिल जाये।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
मद्धम होती सर्दी में
मद्धम-मद्धम रोशनी
बसन्त की आहट से
दिलों में बनने लगी
प्यार‌ वाली चाशनी।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
लोग लिखते हैं चित्रों पर
मैं लिखता हूं मित्रों पर
उन्होंने पढ़ा तो ठीक है
नहीं पढा तो कोई  बात नहीं
मैं तो उनको पढ़ ही रहा हूं
बस इस बहाने से ।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
आज सिमट रहा हूं
मैं अपने वजूद में
देखकर पीछे छूटा अरसा
कुछ ख्वाहिशों ने चलाया
कुछ जिम्मेदारियों का फरसा
उठा , गिरा फिर उठा
उठा पटक की वर्षा
जीत मेरे हिस्से आई
जितनी दिल फेंक को प्यार
दोस्तों से  जो कुछ सीखा
वही आचरण में है सुमार
इंतजार घरवाले करते हैं
दोस्त तो उठा लेते हैं यार
कड़वी को पी लेते दोस्त
मीठे मिला‌ दे कड़वा
मीठी -कड़वी सुनकर इनकी
हर्षित है मेरा मनवा।।
Mohan Jaipuri Jan 2024
जो सबसे सस्ता लगता है
वही था सेहत का खजाना

सुबह सर्दियों में अलाव जगाकर
बैठ अपनों संग बतियाना
सर्दी के बहाने वो खुले में
कुश्ती,माला देना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

गाय, भैंस , बकरी वाला
वह घर का भरा दालान
बरबस ही मन मोह लेता था
वो बछड़ों का रंभाना
शब्द नहीं होते थे ,पर हेत हृदय पहचाना
हाथ फेर स्नेह जताना
वही था सेहत का खजाना।

मोरों की आवाज सुनकर
वह वर्षा का अनुमान लगाना
खाने से पहले नहा धोकर
पाव चुग्गा बरसाना
पूरे दिन पक्षियों का कलरव सुन
वह हृदय का हरसाना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

मिट्टी के बर्तन से घी-दूध
मिट्टी के बर्तन में लेकर
बैठ रेत में सुबह-सुबह ही गटकना
ना खांसी, ना एलर्जी,ना शरीर का लाल होना
इतने मस्त मलंग थे
बैठ जमीन पर ही नहाना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

सूरज की धूप सेंक कर
दोपहर सर्दियों में ओढ़ कम्बल सो जाना
सोचता हूं यही था
पूरे साल‌‌ की इम्यूनिटी का खजाना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।

मकान चाहे कच्चे थे
उसूल बड़े पक्के थे
बिन रोटी लायक काम के
कोई पड़े -पड़े नहीं खाते थे
सरकारों की योजनाओं का
कभी मुंह नहीं ताकते थे
खुद ही बुनकर‌, खुद सील कर
मोटा कपड़ा पहनते थे
पगड़ी पहन ठसक से रहना
वाह रे वाह क्या कहना
लगता इसमें कुछ नहीं था
पर था सेहत का खजाना।
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